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राजाको वश करनेवाले थे और उन्होंने अपने अरीरसे भी ममत्व छोड़ दिया था, तपश्चस्पांसे उनका सुंदर शरीर क्षीण होरहा था, शील और संयमको वे धारण कररहे थे, चारित्र पालन करने में वे सदा तत्पर रहते थे, कषायोंको नाश करनेमें वे समर्थ थे, धर्मोपदेश रूपी अमृतकी वे वर्षा किया करते थे, क्षमाके पर्वत थे, संसारके सर्व जीवोंपर दया धारण करते थे, दोपहरके समयमें भी वे योग धारण करते थे, चोरी झूठ आदि पापरूपी वृक्षोंको काट डालनेके लिये वे कुठारके समान थे, समस्त परिग्रहके वे त्यागी थे और उस समय वे ईर्यापथ शुद्धिसे गमन कर रहे थे। उन गमन करनेवाले श्रेष्ठ मुनिको देखकर वे तीनों स्त्रियां क्रोधसे लाल लाल आंखें निकालकर कहने लगीं॥२०२-६॥ कि अरे नग्न फिरनेवाले ! तू मान मोह आदि सबसे रहित है। हमारे घरसे निकलते ही तू किस पापकर्मके उदयसे हमारे सामने आगया ॥२०७॥ उज्जयनी महा नगरीका राजा शत्रुओंकी सेनाको तपसा क्षीणसद्गात्रं शीलसंयमसंयुतम् । चारित्राचरणोद्यतं कषायनाशनक्षमम् ॥२०३॥ धर्मोपदेशपीयूषं वर्षतं सत्क्षमाधरम् । विश्वनीवदयापात्रं मध्याह्ने योगधारकम् ॥२०४॥ ईर्यापथविलोकंतमाहारार्थ समागतम् । असत्यस्तेयसवृक्षप्रच्छेदनकुठारकम् ॥२०५॥ विश्वपरिग्रहत्यागं धर्माचार्याभिधानकम् । प्रोचुस्ताः सन्मुनिं दृष्ट्वा कोपारुणितलोचनाः ॥२०६॥ ( पंचभिः कुलकम् )॥ ___ अहो ! नग्नाट निष्क्रांते मानमोहविवर्मितः। केन पापोदयेन त्वं कृतोऽस्मदृष्टिगोचरे ॥२०७॥ उज्जयिन्यां महापुर्या यो वैरिबलभमनः।