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दूसरा अधिकार।
[४३. थी, उसके साथ सुख भोगता हुआ राजा अपना काल व्यतीत कर रहा था ॥ १०३ ॥ जिस प्रकार तिदेवी कामदेवके मनको वश कर लेती है, रोहिणी चन्द्रमाके मनको वश कर लेती है उसीप्रकार उस रानीने अपने स्नेहरूपी पाशसे अपने पतिका मन बांध लिया था-अर्थात् वशमें कर लिया था ॥१०४॥ वह राजा विश्वलोचन उस विशालाक्षी रानीके साथ स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्दसे होनेवाले पंचेंद्रियोंके सुखोंका अनुभव करता था ॥ १०५॥ इसप्रकार उस राजाके सुखपूर्वक काल व्यतीत करनेपर शुभ वसंत समय आया । वह वसंत समय तरुण पुरुषोंके हृदयमें कामोद्दीपनका कारण था ॥१०६॥ उस समय सब वृक्षोंपर फल पुष्प आगये थे और सब वृक्षोंपर पक्षीगण निवास करने लग गये थे ॥ १०७॥ उस समय तरुण पुरुष भी उत्सुक होगये थे और स्त्रियां भी अपने संयोगजन्य परस्परके प्रेमसे भरे हुए कामियोंके हृदयमें निवास करने लग गई थीं ॥१०८॥ उस समय षध्या सुकांतया ॥ १०३ ॥ तया धवमनो वद्धं परमस्नेहपाशया । इंदुहृदिव रोहिण्या रतिदेव्येव मन्मथः ॥१०४॥ पंचेंद्रियसुखं भूपो विशालाक्ष्या बुभोज हि । स्पर्शगंधरसालोकगुणश्रवणसंभवम् ॥१०॥ तस्मिन् सुखं प्रकुर्वाणे वसंतसमयः शुभः । प्राप्तस्तरुणचित्तेषु कामोत्पादनहेतुकः ॥ १०६ ॥ तदा सफलवृक्षाणां समुत्पत्तिरजायत । सत्पुष्पफलयुक्तानां विहंगमनिवासिनाम् ॥१०७॥ तदा कामो युवा जातः कामिनीकामिमानसे । निरंतरस्वसंयोगान्योन्यसुप्रेमपूरिते ॥१०८॥ मुनीनां क्षीणगात्राणां चित्तसंक्षोभकारकः । तत्राभूत्काम--