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गौतमचरित्र। कामरूपी योद्धा शील संयम धारण करनेवाले और असन्तु क्षीण शरीरको धारण करनेवाले मुनियोंके हृदयमें भी क्षोभ उत्पन्न करता था ॥ १०९ ।। उस वसंतऋतुके आजानेपर संसारमें ऐसी कोई स्त्री नहीं थी जो अपने पतिके साथ कलह उत्पन्न करती हो अर्थात् उस समय सब अपना मान छोड़ देती थीं ॥ ११० ॥ उस वसंतऋतु वह राजा विश्वलोचन अपनी सेना और नगर निवासियोंके साथ अनेक वृक्ष व लताओंसे भरे हुए बनमें अपनी रानीके साथ क्रीड़ा करनेके लिये गया ॥१११॥ वहां जाकर राजाने वह बन देखा। वह बन बड़ा ही मनोहर था और वायुसे हिलती हुई लताओंके समूहसे तथा चहचहाते हुए पक्षियोंकी आवाजसे ऐसा जान पड़ता था मानों राजाके आनेसे वह बन नृत्य ही कर रहा हो ॥११२॥ उस समय ऐसा मालूम होता था मानों राजा विश्वलोचनके आनेपर वहांका वायु लतारूपी स्त्रीको नृस ही करा रहा हो । वह लतारूपी स्त्री पुष्पोंके समूहसे सुशोभित थी, पत्ते ही उसके केश थे, फल ही उसके स्तन थे, राजहंस आदि पक्षियोंके शब्द ही उसके गीत थे, वनकी शोभाको वह धारण योद्धा वै शीलसंयमधारिणाम् ॥१०९॥ वसंतसमये प्राप्ते सह का विरहस्य के । कलहं निन कांतैश्च का वनिता प्रचक्रिरे ॥११०॥ वसंते कांतया साईमियाय भूपतिर्वनम् । ससेनो नागरैः साकं नानावृक्षादि. संकुलम् ॥१११॥ नृपोऽपश्यदूवनं कांतं नृत्यदिव तदागमे । मारुताधूतसवल्लीसमूहं विहगस्वनम् ॥ ११२॥ भ्रमरीस्वान सद्गीतैः पिकध्वनिमृदंगकैः। शुकनिर्घोषवीणाभिः कीचकारावतालकैः॥११३॥