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दूसरा अधिकार
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पांचों इंद्रियोंको तृप्त करनेवाले मनोहर सरस कामभोगके द्वारा लीलापूर्वक रानीको साथ प्रसन्न करने लगा॥१२५॥ तदनंतर वह राजा प्रसन्न होकर कामभोगसे उत्पन्न हुए खेदको दूर करनेके लिये रानीके साथ जलक्रीड़ा करने लगा। १२६॥ उस जलक्रीड़ासे सरोवर चलायमान होगया, शर रकी केसर धुल जानेसे सरोवर सब पीला होगया और कमलोंकी सुगन्धीसे सब सुगंधित होगया ॥ १२७ ॥ जलक्रीड़ा करनेके बाद वह राजा तुरईके वाजोंके साथ, स्त्रियोंके गीतोंके साथ और बड़े भारी उत्सवके साथ अपने घरको आया ॥ १२८ ॥ ___अथानन्तर-शाम हुई, जिन कामियोंके हृदय स्त्रियोंने ग्रहण कर रक्खे थे उन कामियोंपर दया करके ही क्या मानों मूर्य अस्त होने लगा और समस्त आकाशमें लाली ही लाली छागई ॥१२९॥ संध्याकाल होगया, आकाशकी कांति लाल हो गई, चारोंओर पक्षियोंके कोलाहल होनेलगे और सूर्यकी कांति छिप गई ।। १३० ॥ तदनंतर अ.काशमें पूर्ण चंद्रमाका उदय क्षपीडनक्षमैः ॥ १२५ ॥ ततो बभूव स भूपो जलक्रीडारतस्तया । सुरतोद्भवसत्खेदहानये प्रीतिमानसः ॥१२६॥ तत्क्रीडाभिश्चलद्वारि दधार प्रीततां सरः। जलधौतांगरागेण पद्मसुगंधिवासितम् ॥१२॥ जलक्रीडां विधायासौ स्वगृहं आययौ द्रुतम् । तूर्यसंदोहनिर्घोष : वधूगीतैर्मनोहरैः ॥१२८॥ अथास्तमित आदित्योऽनुकंपयेव कामिनाम् । योषदगृहीतचित्तानां निर्भरारुणितप्रभः ॥१२९॥ सांध्यकालस्तदा जातः कृतापरारुणछविः। पक्षिकोलाहलाकीर्ण आच्छादितरविद्युतिः ॥१३०॥ ततो नभलि संजातश्चन्द्रोदयः सुविस्तृतः। कृतकुमुदसंकाशः