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दूसरा अधिकार। इन्हीं गुणोंके कारण उस रानीने रात होते ही हुई भरकर एक स्त्रीका पुतला बनाया और उसे कपड़ोंसे खूब सुशोभित किया ॥ १४८॥ उस रानीने उस पुतलेकी कमरमें करधनी पहनाई, पैरोंमें विछुआ पहनाये, माथेपर तिलक लगाया, समस्त शरीरको चन्दनसे लिप्त किया, केशोंको फूलोंसे गुंठित किया, स्तनोंपर कंचुकी (चोली) पहनाई, मुखपर पानकी लाली लगाई और मोतियोंसे जड़ी हुई नाकमें नथ पहनाई ॥ १४९-१५० ॥ तदनन्तर वह रानी उस पुतलेके रूपको देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई, क्योंकि उस पुतलेका बना हुआ शरीर बहुत ही सुशोभित होरहा था और ठीक रानीके रूपके समान ही जान पड़ता था ॥ १५१ ॥ फिर उस रानीने मणि तथा मोतियोंसे जड़े हुए अनेक रेशमी वस्त्रोंसे मुशोभित और अनेक प्रकारके सुगन्धित द्रव्योंसे सुगंधित ऐसे पलंगपर उस पुतलेको सुला दिया ॥१५२॥ तदनन्तर उस रानी विशालाक्षीने राजा विश्वलोचनके द्वारपाल आदि सब सेवशौचं च मूर्खत्वं स्त्रीणां दोषा निसर्गजाः ॥ १४७ ॥ निशागमे विशालाक्ष्या शोभनं तूलिकामयम् । प्रकल्पितं वधूरूपं दुकूलपरिभूषितम् ॥१४८॥ कटिमेखलया युक्तं नूपुरशोभितक्रमम् । तिलकाकीर्णसद्भालं चंदनैर्लिप्तविग्रहम् ॥१४९॥ पुष्पैठितसत्केशं कंचुकाच्छाद्यतस्तनम् । तांबूलारक्तसहकं नासिकाधृतमौक्तिकम् ॥ १५० ॥ ततस्तद्रूपमालोक्य राज्ञी सानंदलोचना। आतीच्छोभितसद्दात्रं निनरूपमिवापरम् ॥१५१॥ मणिमुक्ताफलाकीर्णे नानासुक्षौमवेष्टिते। स्थापितं तत्तया तल्पे सुगंधिद्रव्यवासिते ॥१५२॥ ततो द्वाःस्थादयः