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गौतमचरित्र ।
अनेक गुणोंसे सुशोभित और गुणवती ऐसी अनेक स्त्रियोंका उपभोग करते हैं ।। ३२ । विद्वान, सुंदर, माता पिताकी भक्ति से भरपूर, रूपवान् और सौभाग्यशाली पुत्र पुण्यके ही प्रभावसे प्राप्त होते हैं || ३३ ॥ राजा महाराजा आदि चड़े पुरुष जो सोनेके पात्रोंमें असंत स्वादिष्ट और मनोहर भोजन करते हैं वह सब पुण्यके ही प्रभाव से समझना चाहिये ॥ ३४ ॥ हे राजन् ! शरीरका नीरोग रहना, उत्तम कुलमें जन्म लेना, बड़ी आयुका पाना और सुंदर रूपका मिलना आदि सब उत्तम धर्मका ही फल समझना चाहिये || ३५ ॥ देव, शास्त्र, गुरुकी निंदा करनेसे पाप उत्पन्न होता है और सम्यग्दर्शन, व्रत आदिकोंके नियम भंग करनेसे भारी पाप होता है || ३६ || सातों व्यसनोंका सेवन करने से पाप होता है और पांचों इंद्रियोंके विषयोंको सेवन करने से अतिशय पाप उत्पन्न होता है ||३७|| क्रोध, मान, माया, लोभ आदि
तादिभूपिताः । भुजंते पुण्यतो मर्त्याः सुगुणाढ्याः सुयोषितः ॥ ३२ ॥ सुविधा: शोभनाचाराः पितृभक्ति भरावहाः । रूपसौभाग्यसंपन्नाः पुत्राः भवति पुण्यतः ||३३|| खाद्यस्वाद्यादिरम्यं यद्भोजनं क्रियते नरैः । - तत्पुण्ययोगतो नित्यं सुवर्णभाजनसंस्थितम् ॥ ३४ ॥ नीरोगता कुले जन्म दीर्घायुश्च सरूपता । इत्यादिकं विजानीहि भूपते ! वृष सत्फलम् ।। ३५ ।। सर्वज्ञगुरुशास्त्राणां निंदनात्कलुषं भवेत् । सम्यक्त्वसुव्रतादीनां नियमभंजनाद् दृढम् ॥ ३६ ॥ सप्तव्यसनसंग्रा ह्यात्पापं प्रजायते भुवि । पंचाक्षविषयाणां हि सेवनात्पापमद्भुतम् ॥ ३७ ॥ क्रोधमानादिसंयोगात्परपीडारतादपि । अकृत्याचरणेनापि