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दूसरा अधिकार।
[३६ पड़ता था ॥८०॥ जिसप्रकार पृथ्वी समुद्रोंको धारण करती है उसीप्रकार गंभीर, निर्मल और मनोहर उसकी बुद्धि चारों राजविद्याओंको धारण करती थी ॥ ८१॥ कुंदके पुष्पोंके समान असंत उज्वल और निर्मल उसकी कीर्ति समस्त संसारमें व्याप्त हो रही थी और निर्मल किरणोंकी उत्तम मूर्तिके समान जान पड़ती थी॥८२॥ उस राजाके पास प्रधान, मंत्री, अच्छे अच्छे देश, किले, खजाना और सेना आदि सब कुछ था, प्रभाव उत्साह आदि तीनों शक्तियां थीं, संधि, विग्रह, यान, आसन, द्वेधा, आश्रय आदि छहों गुण थे और इसीलिये वह राजा शत्रुओंके लिये अजेय होरहा था॥८३॥वह राजा संसारके समस्त राजाओंमें मुख्य था, नीतिमें निपुण था, रूपवान् था, सुन्दर था, मधुरभाषी था और प्रजाको प्रसन्न करने में सदा तत्पर रहता था॥८४॥ उसके राज्यसिंहासनपर बैठनेपर सब प्रजा सुखी, धर्मात्मा, दानी, आनंदी और परोपकार कर
तत्पर हो गई थी॥८६॥ उस राजाके विशालाक्षी (दीर्घ स्त्रीणां लक्ष्मीकीडनसद्गृहम् ॥८॥राजविद्या चतस्रोपि दधार यस्य सन्मतिः । गंभीरा निर्मला कांता धरित्री वारिधीन्निव ॥ ८१ ॥ सत्कीर्तिर्यस्य वभ्राम निर्मला भुवनोदरे । सन्मूर्तिरिव शुभ्रांशोः कुंदपुष्पसमुज्वला ॥ ८२ ॥ प्रधानामात्यसदेशदुर्गकोशवलाधरः । त्रिशक्तिः षड़गुणोऽनय्यो भूपोऽभूदरिसंहतेः ॥८३॥ विश्वभूपतिमुख्योऽभूद्यः सुवाक् नीतिकोविदः। सुरूपः सुंदराकारः प्रजारञ्जनतत्परः ॥८४॥ यस्मिन् पाति जनाः सर्वे बभूवुः सुखिनः सदा । धर्मिणो दानिनः कांताः परोपकृतितत्पराः ॥ ८६ ॥ तस्य प्रिया विशालाक्षी