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दूसरा अधिकार।
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कषायोंके संयोगसे, अन्य जीवोंको पीड़ा पहुंचानेसे और 'निंद्य आचरणोंके धारण करनेसे पाप उत्पन्न होता है ॥३८॥ परस्त्रियोंके सेवन करनेसे, दूसरेका धन हरण करनेसे, दूसरोंके दोष प्रगट करनेसे और किसीकी धरोहर मार लेनेसे महा पाप उत्पन्न होता है ॥ ३९ ॥ जीवोंकी हिंसा करने, झूठ बोलने, अधिक परिग्रहकी लालसा रखने और किसीके दानमें विघ्न कर देनेसे पाप उत्पन्न होता है ॥ ४० ॥ मद्य, मांस, मधुके भक्षण करनेसे पाप होता है और हरे कंदमूल आदि सचित्त पदार्थोके स्पर्श करने मात्रसे भी पाप होता है ॥ ४१ ॥ विना छाना हुआ पानी पीनेसे बहुत ही पाप होता है। बिल्ली आदि दुष्ट जीवोंके पालन पोषण करनेसे तथा मिथ्यादृष्टियोंकी सेवा करनेसे भी पाप ही उत्पन्न होता है ॥ ४२ ॥ पापकर्मके उदयसे ये जीव कुरूप, लंगडे, काने, टोटे, बौने, अँधे, थोड़ी आयुवाले, अङ्ग, उपाङ्ग रहित और मूर्ख उत्पन्न होते हैं ॥ ४३ ॥ पापकर्मके ही उदयसे दरिद्री कल्पषमुपजायते ॥ ३८ ॥ परसीमंतिनीभोगैरन्यस्वहरणादपि । परदोषकथाभ्यासान्न्यासप्रहरणादवम् ॥ ३९ ॥ शरीरिणां बधात्पापमसत्यबचनादपि । परिग्रहग्रहेणैव दानविघ्नकरादपि ॥ ४० ॥ मधुपिशितहालानां प्रभक्षणादधं भवेत् । आर्द्रककंदमूलादिसचित्तस्पर्शनादपि ॥४१॥ अगालितनलपानाद्भूयिष्ठ कल्मषं भवेत् । दुष्टानां प्राणिनां पोषान्मिथ्यादृष्टिप्रसेवया ॥ ४२ ॥ कुरूपाः पंगवः काणाः खंना विकलवामनाः । अंधा अल्पायुषो मृढा जायते पापतो नराः ॥४३॥ दरिद्रोपहता नीचाः क्लेशविषादकुष्टिताः । आधिव्याधिसमा