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दूसरा अधिकार |
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किसी दिन उस नगरके बाहर अंगभूषण नामके मुनिराज पधारे और वे नगरके बाहर आमके पेड़के नीचे एक शिलापर विराजमान होगये ॥ १६ ॥ वे मुनिराज चार महीनेका योग धारण करनेके लिये पर्वतके समान आकर विराजमान होगये थे, चारों प्रकारका संघ उनके साथ था, निर्मल सम्यग्दर्शनसे वे विभूषित थे, पूर्ण अवधिज्ञानको धारण करनेवाले थे, सम्यक् चारित्रके आचरण करनेमें सदा तत्पर थे, कामदेवरूपी प्रबल राजाका मर्दन करनेवाले थे, तपश्चरणसे उनका शरीर क्षीण हो गया था, क्रोध, मान आदि कषायरूपी महा पर्वतको चूर चूर करनेके लिये वे वज्र के समान थे, मोहरूपी मदोन्मत्त हाथीको विदारण करनेके लिये सिंहके समान थे, पांचों इंद्रियरूपी मल्लोंको जीतनेवाले थे, परीषहोंको जीतनेवाले थे, सर्वोत्तम थे, छहों आवश्यकोंसे सुशोभित थे, तथा मूलगुण और उत्तरगुणोंको धारण करनेवाले थे | १७ - २० ॥ उन मुनिराजका आगमन सुनकर राजा महीचंद्र अपनी रानी एवं नगरनिवासियोंके - पीठे तत्पुरोपवने स्थितः ॥ १६ ॥ चातुर्मासिकयोगस्य स्थिती क.. क्षमाधरः । चतुर्विधसुसंघाढ्यः सत्सम्यक्त्वविभूषितः ॥ १७ ॥ संपूर्णावधिसन्नेत्रश्चारित्राचरणोद्यतः । मदनभूपतिसंमर्दस्तपसाक्षीणविग्रहः ॥ १८ ॥ क्रोधमानादिशैलेंद्रध्वंसवज्ञसमानकः । मोहमहागजेंद्राणां प्रविदारणकेसरी ॥ १९ ॥ पंचाक्षमल्लसज्जेता परीषहजयी परः । षडावश्यक संपन्नो मूलोत्तरगुणाधरः ॥ २० ॥ (पंचभिः कुलकम्) । तस्य चागमनं श्रुत्वा महीचंद्रश्चचाल सः । सप्रियो नागरैः सार्द्ध सैन्यगण