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प्रथम अधिकार।
[२३ तदन्तर महाराज श्रेणिकने गणघरोंके स्वामी सर्वज्ञदेव भगवान् महावीरस्वामीको नमस्कार किया और फिर हाथ जोड़कर वे भगवान गौतम गणधरके पूर्व वृत्तांत पूछने लगे ॥११॥ हे प्रभो ! हे जिनेंद्रदेव ! ये गौतमस्वामी कौन हैं, किस पर्यायसे आकर यहां जन्म लिया है और किस धर्मसे इन्हें लब्धियां प्राप्त हुई हैं ? हे प्रभो ! ये सब बातें बतलाइये॥१.१२॥ हे जिनेन्द्रदेव ! क्या आपके निर्मल बचनोंसे किसीके मनमें संदेह रह सकता है ? क्या सूर्यकी किरणोंसे भी कहीं अंधकारका समूह ठहर सकता है ? ॥११३॥ धर्मके प्रभावसे उच्चकुलकी प्राप्ति होती है, मिष्ट बचनोंकी प्राप्ति होती हैं, सबका प्रेम प्रगट होता है, राज्य प्राप्त होता है, सौभाग्यशाली बनता है, सबसे उत्तम पद पाता है, सर्वांग सुंदर स्त्रियां प्राप्त होती हैं, संसारका नाश होता है, स्वर्गकी प्राप्ति होती है, अच्छी बुद्धि प्राप्त होती है, उत्तम यश मिलता है, उत्तम लक्ष्मी प्राप्त होती है और अन्तमें मोक्षरूपी लक्ष्मी प्राप्त होती है । इसलिये हे श्रेणिक ! तू सदा जैनधर्ममें ही अपनी सुबुद्धिको लगा ॥ ११४ ॥ इसप्रकार मंडलाचार्यश्रीधर्मचंद्र विरचित गौतमचरित्रमें श्रेणिकके
प्रश्नको वर्णन करनेवाला यह पहला अधिकार समाप्त हुआ। ततो नत्वा महावीरं सर्वशं गणनायकम् । गौतमपूर्ववृत्तांतं पप्रच्छ स कृतांजलिः॥ १११ ॥ कोऽयं कस्मात्समायातो गौतमः केन धर्मणा। संजाता लब्धिरस्येयं कथयेति निनप्रभो ! ॥ ११२ ॥ जिनेन्द्र तक सवाक्यैः केषां मनसि संशयः । संतिष्ठते तम्रोव्रातः किंवादित्यमरीचिभिः ॥११३॥ धर्मादुच्चकुलं सुवाक् प्रियतरो राज्यं च सौभा