Book Title: Dravyadrushti Prakash
Author(s): Vitrag Sat Sahitya Prasarak Trust
Publisher: Vitrag Sat Sahitya Trust Bhavnagar

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Page 15
________________ IX परिशुद्धरूपसे ग्रन्थ प्रकाशित हो, यही योग्य है । अतएव ग्रन्थको यथाशक्ति परिशुद्ध किया गया है। __ प्रस्तुत ग्रन्थकी एक अन्य विशेषता है कि यद्यपि मूल ग्रन्थके तृतीय खण्डमे कई जगह स्पष्टता हेतु कोष्ठकोके माध्यमसे विवक्षा स्पष्ट की गई है तथापि कई समाधानोके लिए विशेष स्पष्टताकी आवश्यकता समझते हुए इस ग्रन्थमे कोष्ठकोमे तविषयक विशेष स्पष्टीकरण दिया है, जिसे अलग टाइप (अक्षरो )मे दर्शाया गया है, आशा है ऐसा करना पाठकोके लिए हितकारी सिद्ध होगा । ऐसा करनेके पीछे कारण यो बना : यद्यपि मैने कई बार इस ग्रन्थका आद्योपांत स्वाध्याय किया है और सदा अपूर्वता ही लगती रही । ऐसी बात एक बार प्रमोदसे किसी चर्चाके दौरान मैने माननीय श्री शशीभाईजीको कही तो उन्होने बतलाया कि “इस ग्रन्थके संकलन और सम्पादनमे प्रमुखरूपसे यही एक मानदण्ड सामने रखा गया था कि यह ग्रन्थ अध्यात्मविद्याका उच्च कोटिका सिद्ध हो। इसी दृष्टिसे ही ग्रन्थमे प्रकाशित सभी प्रश्नोत्तरीका चयन किया गया था । यदि कही किसी प्रश्नका उत्तर ऊपर ऊपरसे साधारण-सा लगे तो भी उसकी गवेषणासे वह उत्तर निश्चित ही असाधारण प्रतीत होगा । अतः आप इसी दृष्टिकोणको मुख्य रख कर ग्रन्थका स्वाध्याय करे तो आपको अनेक विशेषताये लक्ष्यगत होगी ।" तबसे साधारण-से लगते उत्तरोमे गम्भीरता भासित होने लगी और जब जब वैसे उत्तरोमे गर्भित अर्थगांभीर्यताका रहस्योद्घाटन माननीय श्री शशीभाईजी करते तो ऐसा बारबार लगता कि यदि वैसी स्पष्टता सर्व साधारणको सुलभ हो तो उनके लिए विषयकी सूक्ष्मता भासित होना व मार्गकी सूझ होना अधिक सरल होता । मेरे बारम्बार अनुरोध करने पर ही उन्होने इस ग्रन्थके कई स्थलोपर स्पष्टता की है जिसके लिए मै उनका जितना भी आभार मानूं कम होगा। उक्त विशिष्टताओके अतिरिक्त प्रस्तुत ग्रन्थमे मेरे पिताश्रीके अन्तर्बाह्य जीवनके विशिष्ट पहलुओको “श्री निहालचन्द्रजी सोगानी [- व्यक्तित्व एव कृतित्व]" शीर्ष कसे प्रकाशित किया गया है । यद्यपि मूल ग्रन्थमे मेरी स्व. छोटी बहिन श्रीमती कुमुदलताने अपने पिताश्रीका संक्षिप्त परन्तु अति भाववाही जीवन परिचय दिया था । तथापि अनेक मुमुक्षुओको उनके जीवन-प्रसंगोके बारेमे विशेष जिज्ञासाये रही है । इसके अलावा जब जब मेरी मुताक़ात माननीय श्री शशीभाईजीसे होती तो वे मुझे बारम्बार प्रेरित करते कि मै अपने पिताश्रीके जीवनके अप्रकाशित प्रसंगो तथा उनके जीवनवृत्तकी विशेष छानबीन करुं । मुख्यत उन्हीकी प्रेरणावश मै जब तब तद्विषयक महत्त्वपूर्ण बातोका पता करके उन्हें नतलाता रहा हूँ। इस सम्बन्धमे जिन लोगोने मुझे सहयोग

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