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विषयकी सर्वांग व गहन पकड़, निःशंकता, वाच्यग्राहकता और अन्तर् सूक्ष्मताके साथ ही उनकी दूरदर्शिता भी स्वतः उजागर होती है।
माननीय सम्पादकोने अन्यको तीन खण्डोमे विभाजित करके प्रथम खण्डमे पत्र विभाग, दूसरे खण्डमे ग्रन्थके मुख्य निर्दिष्ट विषय-समर्थक पूज्य गुरुदेवश्रीके प्रवचन-अंश तथा तीसरे खण्डमे तत्त्वचर्चा रखी; एवम् ग्रन्थकी विषय सामग्रीके अनुरूप ही ग्रन्थका शीर्षक "द्रव्यदृष्टि-प्रकाश" रखा । मैने अपनी मातृश्रीकी मंगल प्रेरणासे यह ग्रन्थ सन् १९६७मे प्रकाशित किया और सार्वजनिक करण हेतु इसे अपने पिताश्रीके अनन्त अनन्त उपकारी पूज्य गुरुदेवश्रीके पावन करकमलोमे समर्पित करके ग्रन्थ-विमोचनकी मंगलविधि सम्पन्न की । प्रारम्भमे ग्रन्थके उक्त तीनो खण्ड संयुक्त थे लेकिन बादमे तीसरे खण्डकी जिल्द अलगसे की गई जिसे काफी समय तक पूज्य गुरुदेवश्री अपने हाथोसे सुयोग्य व अभ्यासी मुमुक्षुओको देते थे। जिन्हे यह ग्रन्य मिलता वह अपनेको धन्य समझता था। पुज्य गुरुदेवश्रीका उक्त प्रकारका वर्तन ही ग्रन्थकी विशिष्टताको प्रमाणित करता है।
तत्पश्चात् ग्रन्थके प्रथम और द्वितीय खण्डकी प्रथम आवृत्तिमे जो कुछ त्रुटियाँ रह गई थी उन्हे श्री मणिकान्त पदमशी नागड़ा, घाटकोपर (बम्बई)वालोंने यथासम्भव सुधार कर सन् १९७०मे द्वितीय आवृत्तिके रूपमे प्रकाशित किया गया ।
मेरे पिताश्री मारवाड़ी-हिन्दी भाषी थे जब कि धार्मिकक्षेत्रमे उनके परिचित, जिनसे कि उनका पत्र व्यवहार व तत्त्ववयि हुई, प्रायः गुजराती भाषी रहे । ये लोग वाच्यको सही तौरसे समझ सके इसी आशयसे वे कई गुजराती शब्द, जिससे हिन्दीभाषी प्रायः परिचित नही है, प्रयोग करते थे और कभी कभी तो उनके द्वारा गुजराती-सी लगनेवाली वाक्य रचना भी सहज हो जाया करती थी। इस प्रकारसे उनकी अभिव्यक्तिमे मारवाड़ी, हिन्दी और गुजराती भाषाओका सहज मिश्रण हो गया था। और जिन्होने तत्त्वचर्चाओमे हुए समाधानोको सुनकर लिखा, उन्होने भी अपनी मातृभाषा गुजरातीमे ही लिखा था । संयोगवश ग्रन्थके सम्पादक भी गुजराती होने तथा तत्त्वचर्चाकी प्रकाश्य सामग्रीकी भाषाकीय स्थिति उक्त प्रकारकी होनेसे उसके हिन्दी प्रकाशनमे लौकिक अपेक्षासे माने जानेवाली भाषा/वाक्य/मात्रा आदिकी त्रुटियाँ होनी स्वाभाविक थी। परन्तु वाच्य अवगाहन/भासनमे भाषा अथवा त्रुटियाँ आदि कभी बाधक नही बनती है । तथापि जिनका भाषा, थब्दो व मात्रा आदिकी अशुद्धताकी ओर ध्यान गया उन्होने उस ओर मेरा ध्यान बार-बार आकर्षित किया है। - सुयोगसे जब तीनो खण्डोका समन्वित ग्रन्थका प्रकाशन होनेका है तो उल्लिखित त्रुटियोको दूर करके तथा गुजराती शब्दोका प्रचलित हिन्दीमे रूपांतरित करके