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प्रवचन-२५ वैसा जीवन जीने की शक्ति अपने आप में पाते नहीं होंगे! ऐसा भी हो सकता है कि जब संसार में दुःखों से, आपत्तियों से घिर जाते होंगे.... सर्वत्र अन्धकार दिखता होगा, तब साधुजीवन अच्छा लगता होगा। परन्तु 'साधुजीवन में वैषयिक सुखभोग नहीं मिलते हैं.....साधुजीवन में कुछ कष्ट सहन करने पड़ते हैं, ऐसे विचार आने पर साधुजीवन से विरक्त बन जाते होंगे! होता है न ऐसा? पापों के प्रति नफरत पैदा हुई है?
गृहस्थजीवन पापमय है, इसलिए अच्छा नहीं है, यह तो हुई ज्ञान की बात | मन की बात दूसरी है! पापमय जीवन में भी सुखों का अनुभव होता है तो मज़ा आ जाता है! आप लोगों को पापों से नफरत है? पापों के प्रति घृणा है? नहीं, आपको तो दुःख से नफरत है, दु:खों के प्रति घृणा है। यदि आपके पास वैषयिक सुखों के साधन हैं....भरपूर भौतिक सुख-सामग्री है, तो आपको संसार के प्रति, गृहस्थजीवन के प्रति प्रेम होगा, राग होगा। पापों से नफरत होगी तभी गृहस्थजीवन का प्रेम टूटेगा।
यदि आत्मा प्यारी लगे, प्रिय आत्मा की कर्ममलिन अवस्था देखी जाये, आत्मा की दुःखपूर्ण अवस्था देखी जाये....और आत्मा को संपूर्णतया दु:खमुक्त करने की प्रबल भावना जगे, तो ही साधुता-श्रमण जीवन प्यारा लगेगा | क्यों गृहस्थजीवन का त्याग करके साधुजीवन स्वीकार करना? गृहस्थजीवन में वैसा प्रबल धर्मपुरुषार्थ नहीं हो सकता कि जिस धर्मपुरुषार्थ से आत्मा को कर्मबन्धनों से मुक्त किया जा सके, आत्मा के सभी दुःख दूर किये जा सकें। गृहस्थ जीवन : राग द्वेष का प्राबल्य :
गृहस्थजीवन ऐसा जीवन है कि जिसमें दिन-रात के २४ घंटों में धनसंपत्ति कमाने में कितने घंटे व्यतीत हो जाते हैं? प्रमाद और निद्रा में कितने घंटे निकल जाते हैं? खाने-पीने और घूमने में कितने घंटे गुजर जाते हैं? स्नेहीस्वजन और मित्रों के साथ बातें करने में कितना समय व्यतीत हो जाता है? धर्मआराधना करने के लिए कितना समय बचता है? धर्मचिन्तन करने के लिए कितना समय बचता है?
गृहस्थजीवन की तमाम प्रवृत्तियों में क्या विवेक और मर्यादाओं की समानता रहती है?
गृहस्थजीवन की हरेक प्रवृत्ति ज्ञानी पुरुषों के मार्गदर्शन के अनुसार कर सकते हो? नहीं, राग-द्वेष और मोह की प्रबलता आपको अविवेकी और
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