Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ अन्यवसहित पदच्छेद गाथावत् गाथार्थ नारक, असुरकुमार आदि, पृथ्वीकाय आदि, बेइन्द्रिय आदि, गर्भज तिर्यंच, और मनुष्य, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक // 2 // विशेषार्थ : 1. रत्नप्रभा नरक, २.शर्कराप्रभा नरक, 3. वालुकाप्रभा नरक, पंकप्रभा नरक, 5. धूमप्रभा नरक, 6. तमः प्रभा नरक, 7. तमस्तमः प्रभा नरक, इस तरह सात प्रकार पृथ्वी के भेद अनुसार सात प्रकार के नरक का एक दंडक गिना गया है। तथा 1. (1) असुरकुमार, 2. नागकुमार, 3. विद्युतकुमार, 4. सुवर्णकुमार, 5. अग्निकुमार, 6. द्वीपकुमार, 7. उदधिकुमार, 8. दिशिकुमार, 9. वायुकुमार, 10. स्तनित कुमार, इस तरह भवनपति देवों के 10 दंडक है। . 1. पृथ्वीकाय, 2. अप्काय, 3. अग्निकाय, 4. वायुकाय और 5. वनस्पतिकाय, इस तरह पृथ्वीकाय आदि पांच स्थावरों का या पांच एकेन्द्रियों के 5 (पांच) दंडक हैं। 1. द्वीन्द्रिय, 2. त्रीन्द्रिय, और 3. चतुरिन्द्रिय, इस तरह तीन विकलेन्द्रिय के तीन दंडक हैं। तथा गर्भज तिर्यंच का एक, गर्भज मनुष्य का एक, (2)16 व्यंतरों का फूटनोट :1) 15 प्रकार के परमाधार्मिक देवों को असुरकुमार निकाय में गिनना। 1- सब व्यंतर मिल के 105 प्रकार के होते है; उनके भेद दूसरे ग्रन्थ से जानना। | दंडक प्रकरणा सार्थ (5) दंहक प्रकरण सार्थ |