Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ ११दर्शनद्वार गाथा थावर-बि-तिसु-अचक्खु, चउरिंदिसुतदुगंसुए भणियं मणुआचउदंसणिणो,सेसेसुतिगंतिगंभणियं॥११॥ संस्कृत अनुवाद स्थावरद्वित्रिष्वचक्षुश्चतुरिन्द्रियेषुतद्धिकं श्रुतेभणितं। . मनुजाश्चतुर्दशनिनःशेषेषुत्रिकंत्रिकंभणितं॥१९॥ अन्वय सहित पदच्छेद सुएथावर बितिसुअचक्खु, चउरिंदिसुतदुगंभणियं . मणुआ चउदंसणिणो,सेसेसुतिगंतिगंभणियं॥१९॥ शब्दार्थ बि - बेइन्द्रिय भणियं-कहा है तिसु-तेइन्द्रिय को चउ-चार अचक्खु-अचक्षु दर्शन दंसणिणो-दर्शनवाले तद्-वह (दर्शन) तिगं-तीन दर्शन तिगं-तीन दर्शन सुए-सिद्धांत में, श्रुत में गाथार्थ सिद्धांत में स्थावर, द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय को अचक्षु और चउरिन्द्रिय को दो दर्शन कहा है। मनुष्य को चार दर्शन कहा है। और बाकी रहे हुए को तीनतीन दर्शन कहा है। विशेषार्थ ___ पांच स्थावर, द्वीन्द्रिय, और त्रीन्द्रिय इन सात दंडक में 1 अचक्षुः दर्शन | दंडक प्रकरण सार्थ (74 _ दर्शन द्वार दुगं-दो