Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh

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Page 203
________________ 11.8 महावन महाविदेह के अंत में जगती के पास दो-दो वन रहें हैं वे 4 वन तथा मेरुपर्वत के भद्रशाल, नंदन, सौमनस और पांडुकवन नाम के 4 वन सब मिलकर / 8 महावन हैं। 12. अनेक वेदिका और वनखंड जंबूद्वीप में जो-जो शाश्वत पदार्थ है जैसे पर्वत, कूट, नदी, सरोवर, . कुंड, श्रेणी, मेखला, महावृक्ष, शिला, जगती देवप्रासाद के और सिद्धायतन के विभाग-तीर्थादि अनेक पदार्थों में से कितने यथायोग्य 1 वेदिका 1 वन से अथवा कितने 1 वेदिका 2 वन से और दो महावृक्ष अनेक वेदिका और अनेक वन से घीरे हुए है। 13. 306 महानिधि 34 विजयों की हर विजय में नैसर्प आदि नामवाले 9-9 निधि पांचवे खंड में महानदी के किनारे के पास है। जैसे गंगा महानदी के.पूर्व किनारे पर 9 निधि भूमि में है, वे 12 यो. लंबी, 9 यो. चौड़ी और 8 यो. ऊंची ऐसी बड़ी पेटीओं के जैसे आकारवाली है तथा सवर्ण से बनी हई और आठ-आठ पहियों (चक्रो) पर आग-गाडी के डिब्बे की तरह रहे हुए है। उसमें हर स्थिति को बतानेवाले शाश्वत पुस्तके होते है अथवा उस-उस प्रकार के तैयार पदार्थ मिल सके ऐसा होता है। हर निधि में अपने-अपने नामवाले अधिष्ठायक देव होते है। पांचवे खंड की साधना करके चक्रवर्ति इन नव-निधि को भी सिद्ध करतें हैं। चक्रवर्ति जब दिग्विजय करके अपने नगर में आते हैं तब वे निधियों भी पाताल मार्ग से चक्रवर्ती के नगर के वाहर आ-जाती है। 14. 420 रत्न हर चक्रवर्ति के चक्र-छत्र-दंड-चर्म-खड्ग-मणि-काकिणी ये सात एकेन्द्रिय रत्न तथा सेनापति-गाथापति-वार्धकी-पुरोहित-अश्व-हस्ति और स्त्री ये 7 पंचेन्द्रिय रत्न मिलकर 14 रत्न होते है। जिससे उत्कृष्ट काल में 30 चक्रवर्ति | लघु संग्रहणी सार्थ (186) परिशिष्ठ

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