Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh

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Page 201
________________ के अलावा सदाकाल बंध रहती है। वह गुफा 12 यो. चौडी, 8 यो. ऊंची और 50 यो. लंबी है। चक्रवर्ति एक गुफा में से होकर काकिणी रत्न से दोनों ओर दिवार पर प्रकाशमंडल का आलेखन करके दूसरी ओर भी निकलकर वहां के .. तीन अनार्यखंड जीतकर दूसरी गुफा से होकर वहां पर भी उसी तरह प्रकाशमंडल का आलेखन करके वापस अपने खंड में आते है, इस तरह गुफाओं में प्रकाश मंडलों के प्रकाश से दूसरी ओर के खंडो में आने-जाने का व्यवहार सुलभ होता है। 4. वैताढय के 144 बिल वैताढय में दक्षिण और उत्तर की ओर गंगा सिन्धु आदि महानदी के दोनो और नव-नव बिल होने से एक वैताढय में 72 बिल अर्थात् छोटी गुफाए हैं। भरत-ऐरावत के दोनो वैताढय के मिलकर 144 बिल हैं। अवसर्पिणी के छठे आरे में जब अतिताप और ठंडी आदि उपद्रवों से मनुष्य पशुओं का प्रलय (संहार) काल आता है तब इन बिलों में रहे हुए मनुष्य और पशु ही जीवित रहेंगे और पुनः मनुष्य की और पशुओं की वृद्धि, ये बीज रूप रहे हुए मनुष्य और पशुओं से ही होगी। 5.4 और 34 तीर्थंकर पूर्वोक्त 34 विजयों में जब 1-1 तीर्थंकर होते है तब उत्कृष्ट काल में 34 तीर्थंकर होतें हैं और जघन्य से 4 तीर्थंकर भगवंत महा विदेह में विचरतें हैं। मतांतर से दो तीर्थंकर भी महा विदेह में ही विचरते हैं। 6. चक्रवर्ति-वासुदेव-बलदेव 4 और 30 महाविदेह में उत्कृष्ट से (28 विजय में) 28 चक्रवर्ति अथवा 28 वासुदेव और 28 बलदेव होते है और उसी समये भरत-ऐरावत में भी चक्रवर्ति आदि हो तो जंबूद्वीप में उत्कृष्ट काल में 30 चक्रवर्ति आदि होते हैं। अन्यथा जघन्य से 4 होते हैं, वे महाविदेह में ही होते हैं। जब महाविदेह की 28 विजयों, 28 चक्रवर्ति | लघु संगहणी सार्थ (184) परिशिष्ठ


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