Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
View full book text
________________ 16 उपपात द्वार गाथा संखमसंखासमए गब्भयतिरिविगलनारयसुराय। मणुआनियमासंखा, वणंता,थावर असंखा॥२५|| संस्कृत अनुवाद संख्येयाअसंख्येयाःसमयेगर्भजतिर्यग्विकलनारकसुराश्च। मनुजा नियमात्संख्येया, वनाअनंता:स्थावरा असंख्येयाः॥२५॥ अन्वय सहित पदच्छेद समएगब्भ तिरिविगल नारययसुरासंखं असंखा। मणुआनियमासंखा, वणअणंता,थावराअसंखा||२५|| शब्दार्थ संखं-संख्यात असंखा-असंख्यात, असंख्य समए-एक समय में नियमा-नियम से, निश्चित . संखा-संख्यात ही वण-वनस्पति जीवों अणंता-अनंत असंखा-असंख्य / गाथार्थ (1) एक समय में गर्भज तिर्यंच, विकलेन्द्रिय नरक और देव (१)संख्यात अथवा असंख्यात, मनुष्य संख्यात ही, वनस्पति के जीव अनंत और स्थावर जीव असंख्यात उत्पन्न होते हैं। फूटनोट : (1) संख्यात, असंख्यात और अनंत ये तीनों क्रमानुसार अधिक अधिक संख्यागणित के 3 भेद हैं, उसका स्वरूप चतुर्थ कर्मग्रंथ आदि ग्रंथों से जानना। | दंडक प्रकरण सार्थ 84 ঠgয়ন জe