Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 175
________________ जंबुम्मि-जंबूवृक्ष के वन में | हरिस्सहे-हरिसहकूट (उत्तर कुरु क्षेत्र में) | सट्ठी-ये 60 (=58) भूमिकूट हैं। गाथार्थ : चौंतीस विजयों में चौतीस ऋषभकूट, मेरु और जंबू वृक्ष पर आठआठ, देवकुरु में आठ, हरिकूट और हरिस्सह कूट ये सब मिलकर साठ कूट है। 2 यो. विशेषार्थ :कहां पर 34 विजयों में / मेरु के ऊपर | जंबूवृक्ष पर शाल्मलिवृक्ष पर . उत्तरकुरु क्षेत्र में | देवकुरु क्षेत्र में कूट के नाम | 34 ऋषभकूट | 8 करिकूट 8 जंबुकूट 8 शाल्मलिकूट ऊंचाई | 8 यो. 500 यो. | 8 यो. . 8 यो. गहराई | 2 यो. 125 यो. 2 यो. मूल में विस्तार |12 यो. 500 यो. | 12 यो. .12 यो. शिखर पर विस्तार 4 यो. 250 यो. | 4 यो. यो.. आकार | गोल उर्ध्व गोपूच्छो हाथी का आकार | गोल उर्ध्वगोपूच्छो गोल उर्ध्वगोपूच्छो वर्ण | जंबूनद सुवर्णमय | सुवर्णमय | जंबूनद सुवर्णमय रुप्यमय 2. इसके उपरांत हरिकूट और हरिस्सह कूट को गिनने पर कुल 60 भूमिकूट होंगे। इन दोनों कूटों को आगे सहस्रांक कूट के रूप में गिना है इसलिए 58 भूमि कूट गिने जाते हैं। 3. भूमिकूट याने पर्वत के ऊपर का शिखर नहीं परन्तु मूल से ही भूमि पर शिखर होते हैं। 4. ऋषभकूट :- 34 विजयों में आमने-सामने के पर्वतों से निकली हुई दो-दो मुख्य नदियां जहां-जहां अपना प्रपात कुंड में गिरकर मोड लेती है वहां | लघु संग्रहणी सार्थ (158) भूमि कूटों

Loading...

Page Navigation
1 ... 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206