Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ 6. तीर्थ गाथा: मागहवरदामपभास-तित्थ-विजयेसुएरवय भरहे। चउतीसा तीहिंगुणिया, दुरुत्तरसयंतु तित्थाणं||१८|| संस्कृत अनुवाद :मागधवरदामप्रभासतीर्थानि विजयेषुऐरावतभरतयोः चतुस्त्रिंशत् त्रिभिर्गुणिता द्वयुत्तरशतंतुतीर्थानाम॥१८॥ अन्वय सहित पदच्छेद विजयेषुएरवयभरहेमागधवरदाम पभास तित्थं। . तुचउतीसा तिहिंगुणिया, दुरुत्तरसयं तित्थाणं||१८|| शब्दार्थ :मागह- मागध तीर्थ एरवय- ऐरावत क्षेत्र में वरदाम- वरदाम तीर्थ तिहिं- तीन से पभास-प्रभास तीर्थ गुणिया-गुणने पर तित्थं- तीर्थ (जल में दुरुत्तर- दो ज्यादा (दो उत्तर) (उतरने योग्य स्थान सयं- सो बडे देवस्थान तित्थाणं- तीर्थो की संख्या, तीर्थो विजयेसु - 32 विजय में गाथार्थ : 32 विजयों में ऐरावत और भरत में मागध, वरदाम, और प्रभास नाम के तीर्थ है। चौंतीस को तीन से गुणने पर एक सो दो तीर्थ होते है। लघु संग्रहणी सार्थ (160 તીર્થો