Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ संस्कृत-अनुवाद चत्वारियोजनशतान्युच्छितो निषधोनीलवांश्च। निषधस्तपनीयमयो, वैडूर्यको नीलवान गिरिः॥२८|| अन्वय सहित पदच्छेद निसढोअनीलवंतो. चत्तारिसए जोयण उचिट्ठो। . . निसढोतवणिज्जमओ, नीलवंत गिरिवेरुलिओ॥२८॥ चार शब्दार्थ :चत्तारि-चार सय- सो . उचिट्ठो-ऊंचा . निसढ- निषध पर्वत निलवंतो-नीलवंत पर्वत अ- और, तथा निसढो- निषध पर्वत तवणिज- तपनीय (तपा हुआ) ___ लाल सुवर्ण मओ- मय, रूप, का वेरुलिओ-वैडूर्य रत्न (पानां, पन्ना) का नीलवंत-नीलवंत गिरि- पर्वत गाथार्थ : निषध और नीलवंत चार सो योजन ऊंचे है। निषध तपनीयमय है और नीलवंत पर्वत वैडूर्य रत्नमय है। पर्वतों कीभूमि में गहराई गाथा : सव्वेविपत्वयवरा, समयक्खित्तम्मिमंदरविहूणा। धरणितलेउवगाढा, उस्सेहचउत्थभायम्मि॥२९|| | लघु संगहणी सार्थ (179) पर्वतों की भूमि में गहराई