Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh

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Page 194
________________ जितना बडा विस्तारवाला होता है तथा हिमवंत और हिरण्यवंत क्षेत्र की चार नदीयां प्रारंभ 12 // योजन चौडा और अंत में 125 योजन चौडा प्रवाहवाली है। तथा हरिवर्ष और रम्यक् क्षेत्र की चार नदीयां प्रारंभ में 25 योजन और अंत में 250 योजन प्रवाहवाली है। तथा सीता-सीतोदा नदी प्रारंभ में 50 योजन और अंत में 500 योजन चौडा प्रवाहवाली हैं। प्रश्न :- नदीओं का प्रवाह विस्तार के बारे में कहा, लेकिन गहराई कितनी ? उत्तर :- गहराई गाथा में तो नहीं बताई है। फिर भी हरेक नदी अपने प्रवाह से. हर स्थान पर पचासवा भाग जितनी गहरी होती है। इसलिए गंगादि चार नदीयां प्रारंभ में 0 // (आधा गाऊ) गहरी है। और अंत में 5 गाऊ गहरी है। इस प्रकार सभी नदीयों की गहराई भी अंत में बताई हुई है वहां से देखलेना। पर्वतों के प्रमाण तथारंग (वर्ण) गाथा : जोयणसयमुचिट्ठा, कणयमया सिहरिचुल्लहिमवंता। रुप्पिमहाहिमवंता, दुसउच्चारुप्पकणयमया||२७|| भी स्वरूप निश्चित रूप से नही लिख सकते / इन दो क्षेत्र में निश्चित रूपवाला 1) वैताढय पर्वत 2) ऋषभकूट और दो महानदीयों के प्रपात कुंड है। लेकिन वहां जाना असंभव है तथा गंगादि चार महा नदीयों का जघन्य से रथ मार्ग जितना और गहराई भी बहुत छीछरी कही है। * फूटनोट :शास्त्र में हर स्थान पर जो नियम प्रवाह तथा गहराई कही है। वह मूल तथा अंत के अनुसार कही है। इसलिए कहीं कहीं पर हीनाधिक प्रवाह और गहराई न हो, ऐसा नही जानना। * फूटनोट :छपी हुई प्रत में 'उच्चिट्ठा' की जगह ‘उब्विद्धा' पाठ है। | लघु संग्रहणी सार्थ (177) पर्वतों का वर्ण एवं प्रमाण

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