Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh

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Page 182
________________ विशेषार्थ :- . भरत, ऐरावत, और महाविदेह की• 32 विजय यह सब मिलकर 34 विजय क्षेत्र हैं क्योंकि इन हरेक विजय के छ खंड को चक्रवर्ति संपूर्ण जीतते हैं। इसलिए वह विजयक्षेत्र कहलाते है। इन 34 क्षेत्रों के अलावा दूसरे हिमवंत आदि कोइ भी क्षेत्र ऐसे नहीं है कि जिसमें चक्रवर्ति को विजय पाने के लिए प्रयत्न करना पडे, क्योंकि वहां पर चक्रवर्ति आदि व्यवस्था ही नहीं है। जीतने योग्य 6 खंड का अनुक्रम :1. दक्षिणार्ध मध्य खंड 4. उत्तरार्ध मध्यखंड 2. दक्षिणार्ध पश्चिमखंड 5. उत्तरार्ध पूर्वखंड 3. उत्तरार्ध पश्चिमखंड . 6. दक्षिणार्ध पूर्वखंड _ इस प्रकार अनुक्रम से 6 खंडो को 34 विजयों में जानना। इन 34 विजय में भरत तथा ऐरावत क्षेत्र 5266/19 योजन विस्तारवाला है और कच्छ आदि हरेक विजय 2212 7/8 योजन विस्तारवाले हैं। . महाविदेह की 32 विजयक्षेत्र के नाम पूर्व महाविदेह में 16 पश्चिम महाविदेह में 16 1. कच्छ 9. वत्स 17. पद्म 25. वप्र 2. सुकच्छ 10. सुवत्स. 18. सुपद्म 26. सुवप्र 3. महाकच्छ .11. महावत्स 19. महापद्म 27. महावप्र 4. कच्छावती 12. वत्सावती 20. पद्मावती 28. वप्रावती * फूटनोट :थाली जैसा गोल, चारो ओर तीक्ष्ण धारवाला, दांतवाले तथा वज्ररत्न से बना हुआ चक्ररत्न नाम का मुख्य शस्त्र जिसके पास हो तथा 6 खंड को पूर्ण रूप से जीते वह चक्रवर्ती कहलाता है। (वासुदेव के पास चक्ररत्न होने पर भी वह तीन खंड को ही जीतते है इसलिए वह चक्रवर्ती नहीं है।) लघु संग्रहणी सार्थ (165) विजय और हृदों

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