Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ 269 पर्वत 4 वृत्त वैताढय' शब्दापाती | विकटापाती | गंधापाती | माल्यवंत कहां हिमवंत के | हरिवर्ष के | रम्यक के | हिरण्यवंत के मध्य में / मध्य में | मध्य में | मध्य में मूल में विस्तार 1000 योजन 1000 योजन 1000 योजन 1000 योजन मध्य में विस्तार 1000 योजन 1000 योजन 1000 योजन 1000 योजन ऊपर में विस्तार |1000 योजन 1000 योजन 1000 योजन 1000 योजन ऊंचाई में विस्तार 1000 योजन 1000 योजन 1000 योजन 1000 योजन आकार गोल प्याले | गोल प्याले गोल प्याले | गोल प्याले | के जैसा | के जैसा . | के जैसा / के जैसा 34 दीर्घ वैताढय कहां / भरत के बीच | महाविदेह के बीच / ऐरावत के बीच ऊंचाई | 25 योज़म 25 योजन (हरेक की) 25 योजन आकार | पूर्व. प. लंबा | पूर्व- पश्चिम लंबा / पूर्व प. लंबा 16 वक्षस्कार चित्रकूट आदि सोलह वक्षस्कार पर्वत महाविदेह क्षेत्र में आये है महाविदेह के पूर्व और पश्चिम इन दोनों दिशाओं में दो-दो भाग में विभाजित सोलह सोलह विजयों हैं, उसमें विजय-वक्षस्कार-विजय-अंतर नदी-विजय-वक्षस्कारविजय-अंतरनदी, इस क्रमानुसार हरेक भाग में 4-4 वक्षस्कार पर्वत है। चारो भाग के मिलकर सोलह वक्षस्कार पर्वत है। फूटनोट :1) नदी द्वारा रोके हुए क्षेत्र के (सिवाय) क्षेत्र का विभाग करनेवाला ऐसा शब्दार्थ जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति की वृत्ति में है। | लघु संगहणी सार्थ (145) वृत्त वैताढय