Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh

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Page 169
________________ चतुस्त्रिंशद्वैताढयेषु, विद्युत्प्रभनिषधनीलवन्तेषु तथा माल्यवंतसूरगिरयोर्नवनवकूटानि प्रत्येकम॥१४|| हिमवच्छिखरिणोरेकादशेत्येकषष्टिगिरिषुकूटानाम एकत्वेसर्वधनंशतानि चत्वारिसप्तषष्टिश्च॥१५|| अन्वय सहित पदच्छेद वक्खारेसुपत्तेयं चउ चउकूडा हुंतिय सोमणसगंधमायणसत्त, यरुप्पिमहाहिमवेअट्ठ||१३|| चउतीस वियड्ढेसु विज्जुप्पह निसढ नीलवंतेसु .. तह मालवंत सुरगिरिपत्तेयं नव नव कूडाइं॥१४॥ हिम सिहरिसुइक्कारस, इय इगसट्ठी गिरिसुकूडाणं। एगत्तेसवधणं,चउरोसययसत्तसट्ठी॥१५|| शब्दार्थ सोमणस- सोमनस गजदंतगिरि पर | महाहिमवे- महाहिमवंत गंधमायण- गंधमादन गजदंतगिरि पर | पर्वत पर / रुप्पि- रुक्मि पर्वत पर शब्दार्थ :चउतीस-चौंतीस वियड्ढेसु- वैताढ्य पर्वत पर विजुप्पह- विद्युत्प्रभ गजदंत गिरि के ऊपर निसढ- निषध पर्वत ऊपर नीलवंतेसु-नीलवंत पर्वत ऊपर तह- तथा माल्यवंत-माल्यवंत गजदंत गिरि ऊपर सुरगिरि-मेरु पर्वत ऊपर नव नव- नव नव कूडाइं-कूट, शिखर पत्तेयं- प्रत्येक ऊपर | लघु संगहणी सार्थ (152) शिखर द्वार

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