Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ संस्कृत-अनुवाद भरतादीनिसप्तवर्षाणि,वैताढयाश्चत्वारश्चतुस्त्रिंशदवृत्तेतराः षोडशवक्षस्कारगिरयो, द्रौ चित्र विचित्रौद्रौयमकौ॥१२. द्वेशतेकाञ्चनगिरीणां, चत्वारोगजंदन्ताश्च तथासुमेरुश्च षड्वर्षधराः, पिंडे, एकोनसप्तति (त्यधिक)शतेद्वे॥१२॥ अन्वय सहित पदच्छेद भरहआइसत्तवासाचउवट्टवियड्ढचउरतिसइयरे / सोलसवक्खार गिरि, चित्त विचित्तदोदोजमगा|११|| दोसय कणयगिरीणंयचउगयदंता तहसुमेरु / छवासहरा, पिंडे-दुनिसयाएगऊणसत्तरी॥१२॥ शब्दार्थ दो- दो . . वियड्ढ- वैताढ्य पर्वत चउ- चार चउरतिस- चौतीस वक्खार- वक्षस्कार दोसय- दो सौ कणयगिरीणं- कंचनगिरि गयदंता- गजदंतगिरि सुमेरू- मेरू पर्वत वासहरा- वर्षधर (महाक्षेत्र की मर्यादा बांधनेवाला) चित्त- चित्र पर्वत विचित्त- विचित्र पर्वत जमगा- यमकगिरि पिंडे- सब मिलकर एगुणसत्तरि- उनसत्तर सया- सो दुन्नी- दो गाथार्थ भरतक्षेत्रादि सात मनुष्यों के रहने योग्य क्षेत्र हैं। चार वृत्त (गोल) और चौंतीस दीर्घ वैताढ्य पर्वत है। सोलह वक्षस्कार पर्वत हैं। दो चित्र लघु संग्रहणी सार्थ (142) वासक्षेत्र और पर्वत