Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ न भवति हिधर्मः श्रोतुः, सर्वस्यैकान्ततो हितश्रवणात बुवतोडनुग्रहबुद्धया, वक्तुस्त्वेकान्ततोभवति॥१॥ अर्थ :- कल्याणकारी वचन सुननेवाले, सभी श्रोताओं धर्म को प्राप्त करेंगे ही, ऐसा एकान्त नियम नहीं है। लेकिन उपकार बुद्धि से बोलनेवाले वक्ता को तो धर्म होता ही है ऐसा एकान्त नियम है, पुनः ऐसा भी कहा है कि : अस्तुवामाऽस्तुवा बोधः परेषांकर्मयोगतः। तथापिवक्तुमहतीनिजरागदिता जिनैः||२|| .. . अर्थ :- कर्म के योग से अन्य जीवों को बोध (ज्ञानप्राप्ति धर्मप्राप्ति) हो या न हो, परन्तु बोध वचन कहनेवाले वक्ता को तो अवश्य महानिर्जरा होती है। ऐसा श्री जिनेश्वरों ने कहा हैं। उपरोक्त दंडक प्रकरण के अर्थ में मतिमंदता से, जानते-अजानते, सूक्ष्म अथवा स्थूल भूल-चूक रही हो तो, उसे आप सज्जनों सुधारकर, शुद्धिपूर्वक पढेंगे, ऐसी हमारी अभिलाषा है ऐसा हमारा सूचन है। दंडक प्रकरण समाप्त श्रीमद यशोविजयजी जैन संस्कृत पाठशाला द्वारा प्रकाशित दंडक प्रकरण का प्. आ. देव श्री स्थूलभद्रसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्यरत्न पू. मु. श्री अमीतयशविजयजी म. सा. द्वारा हिन्दी अनुवादित एवं प्राप्यापक सुरेन्द्र सी. शाह द्वारा संपादित दंडक प्रकरण सार्थ विवेचन सह संपूर्ण हुआ। | दंडक प्रकरण सार्थ (122) प्रशस्ति-गुल परंपरा-संबंध