Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh

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Page 143
________________ विशेषार्थ : 1) आधी गाथा में भगवान महावीर स्वामी की स्तुतिरूप मंगलाचरण है, 2) जंबूद्वीप के शाश्वत पदार्थो का वर्णनरूप विषय है, 3) 'स्वपर के बोध के / लिए' यह प्रयोजन है, 4) सूत्रों में से उद्धार करके यह संबंध है। अपायापगमातिशय, ज्ञानातिशय, पूजातिशय, और वचनातिशयरूप चार अतिशय अनुक्रम से सूचित किया है। विश्व के पदार्थो को जानना, यह छद्मस्थ मनुष्यों के लिए अति दुष्कर है। सर्वज्ञ भगवंत के अलावा उन पदाथों को कोई भी. नहीं जान सकता। प्रभु महावीरस्वामीने अपने केवलज्ञान से, सर्वज्ञत्व की वजह से जाने हुए पदार्थो को जगत्गुरु के रूप में जगत के जीवों को केवल उपकार के लिए ही कहा है। क्योंकि जिनेश्वर प्रभु होने से स्वार्थ और रागद्वेष से रहित थे। उनके वचनों पर अविश्वास करने का कोई भी कारण नहीं है। जगतपूज्य प्रभु के . वचन में अंश मात्र भी शंका करने का अवकाश नहीं है इतने विस्तृतरूप से और निश्चित संख्या से कोई भी असर्वज्ञ मनुष्य ऐसा स्वरूप कहने में समर्थ नहीं हो : सकता। नजदीक का ज्ञान प्राप्ति, और परंपरा से मोक्ष-प्राप्ति यह प्रयोजन है। संबंध चार प्रकार के होते हैं / 1) वाच्य-वाचक, 2) गुरु पर्वक्रम, या ने गुरु परंपरा 3) साध्य-साधन, 4) उपायोपेय / सम्यग् चारित्र के लिए सम्यग् ज्ञान प्राप्त करने की इच्छावाले सम्यग् दर्शनी भव्य आत्माएँ, तथा अधिगम सम्यक्त्व प्राप्त करने के लिए पदार्थो का अधिगम (ज्ञान) करने की इच्छावाले मार्गानुसारी भव्य आत्माएँ भी अधिकारी गिने जाते हैं। जम्बूद्वीप का प्रमाण जंबूद्वीप की लंबाई तथा चौडाई 1,00,000 एक लाख योजन है। उसकी मोटाई भी 1,00,000 योजन हैं। क्योंकि जंबूद्वीप के मध्य में 99,000 योजन ऊंचा मेरू-पर्वत है और 1000 योजन जमीन के नीचे है। अथवा महाविदेह क्षेत्र में 1000 योजन नीचे अधोग्राम है। लघु संग्रहणी सार्थ (16) अनुबंध चतुष्ठय वर्णन

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