Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ मंगल, विषय, प्रयोजन और संबंध। गाथा: नमिय जिणंसवनुजगपुज्ज,जगगुरुं महावीरं। जंबूदीव पयत्थे, वुच्छंसुत्तासपरहेऊ॥२॥ संस्कृत अनुवाद नत्वा जिनंसर्वज्ञ,जगत्पूज्यंजगद्गुरुं महावीरं जम्बूद्वीपपदार्थान, वक्ष्येसूत्रात्स्वपरहेतोः॥२॥ अन्वय सहित पदच्छेद सव्वल्लुजगपुज्जंजगगुरुं महावीरंजिणंनमिय स-पर-हेऊसुत्ताजंबूदीवपयत्थेवुच्छं॥२॥ शब्दार्थ :नमिय- नमस्कार करके जंबुद्वीप- जंबूद्वीप में रहे हुए जिणं- जिन को, जितनेवाले को | पयत्थे- पदार्थो को सव्वन्नु- सर्वज्ञ, केवलज्ञानी / वुच्छं- कहुंगा जगपुजं- तीन जगत के पूज्य सुत्ता- सूत्र में से उद्धार करके, सूत्रानुसार जगगुरुं- तीन जगत के गुरु . स-पर-अपने और दूसरों के हेतु- (कल्याण के लिए) अर्थे गाथार्थ : सर्वज्ञ, जगत्पूज्य, जगद्गुरु श्री महावीर जिनेश्वर को नमस्कार करके अपने और दूसरों के (ज्ञान) लिए, सूत्रों में से जंबूद्वीप के पदार्थ कहुंगा। | लघु संग्रहणी सार्थ (125) अनुबंध चतुष्ठय वर्णन