Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ अन्वय सहित पदच्छेद खंडाजोयण वासा पव्वय कूडाय तित्थसेढीओ: विजयद्दहसलिलाओएसिं पिंडसंघयणीहोइ||२|| शब्दार्थ खंड- खंड, विभाग विजय- विजय, छ खंड का देश . योजन-योजन दह- द्रह, सरोवर वासा-वर्षो-क्षेत्रो. सलिलाओ- नदीयाँ . .. पव्वय-पर्वतो पिंड- पिंड, संग्रह, समूह कूडा- कूट, शिखरो एसिं- इन दस पदार्थो का तित्थ- तीर्थ संघयणी- संग्रहणी सेढीओ- श्रेणिओं गाथार्थ: खंडो, योजनो, वासक्षेत्रो, पर्वतो, शिखरो (कूटो), तीर्थो , श्रेणियो, विजयों, ह्रदों (सरोवर) और नदीयां; इनके संग्रह को संग्रहणी कहते है। विशेषार्थ : 1) खंड- भरत अथवा ऐरावत क्षेत्र की * चौडाई जितने (लंबाई जितने नहीं) कितने खंड होते है ? अथवा चोरस योजन प्रमाण कितने खंड होते है ? 2) योजन- विष्कंभ की परिधि पर से क्षेत्रफल के योजन की संख्या कहना। 3) वर्ष- मनुष्यों के रहने योग्य क्षेत्र की संख्या। * फूटनोट :1) उत्तर से दक्षिण की जो लंबाई है वह चौडाई समझना और पूर्व से पश्चिम की जो लंबाई है वह लंबाई ही समझना। | लघु संग्रहणी सार्थ (128) मुख्य दश पदाथ