Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ शब्दार्थ दुगे-द्विक में, 2 भेद में पण-पांच उपयोग छक्कं-छह उपयोग | तियगं-तीन गाथार्थ ___उपयोग मनुष्य में 12, नरक तिर्यंच और देवों में 9, विकलेन्द्रिय के दो भेदो में 5, चउरिंद्रिय में 6 और स्थावर में 3 होते है। विशेषार्थ आगे की गाथा में कहे हुए 12 प्रकार के उपयोग में से गर्भज मनुष्य को यथायोग्य 12 उपयोग होते हैं। नरक के दंडक में मनः पर्यवज्ञान, केवलज्ञान, केवलदर्शन के बिना 9 उपयोग है और गर्भज तिर्यंच तथा देवों के 13 दंडकों में भी यही 9 उपयोग है। बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय इन दो विकलेन्द्रिय में दो ज्ञान, दो अज्ञान, और एक अचक्षुदर्शन, सभी मिलाकर 5 उपयोग है चउरिंद्रिय में इन पांच उपयोग के साथ छट्ठा चक्षुदर्शन गिनने से छह उपयोग होते हैं स्थावर के पांचों दंडक में 2 अज्ञान और 1 अचक्षुदर्शन मिलने से 3 उपयोग होते हैं। यहां कौनसा ज्ञान तथा अज्ञान है वह ज्ञान-अज्ञान द्वार के अवसर पर 20 वीं गाथा में कहा गया है तथा एक जीव को एक साथ कितने उपयोग होते है ? वह 19 वीं तथा २०वीं गाथा के अर्थ से समझ लेना। // 24 दंडकों में 12 उपयोग। 1. ग. मनुष्य-१२ 1 द्वीन्द्रिय-५ 1 नरक-९ १त्रीन्द्रिय-५ 1 ग.तिर्यंच-९ 1 चउरिन्द्रिय-६ 13 देव-९ 5 स्थावर-३ | दंडक प्रकरण सार्थ (83) उपयोग द्वार