Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ संस्कृत अनुवाद पृथिव्यब्वनस्पतिमध्ये नारकविवर्जिताजीवाः। सर्वे उत्पद्यन्ते निजनिजकर्मानुमानेन॥३६|| अन्वय सहित पदच्छेद पुढवीआउवणस्सइमज्झेनारय विवज्जियासवेजीवा निय नियकम्म अणुमाणेणंउववज्जति॥३|| शब्दार्थ मज्झे-में, मध्ये उववजंति-उत्पन्न होते, पैदा होते है विवजिया-विवर्जित, रहित | नियनिय-अपना-अपना .. बिना, सिवाय कम्म-कर्म जीवा-जीवों अणुमाणेणं-अनुसार सव्वे-सभी २३(दंडक)जीव गाथार्थ पृथ्वीकाय, अप्काय, और वनस्पतिकाय में नरक के सिवाय सभी जीव अपने अपने कर्मानुसार उत्पन्न होते हैं। पृथ्वी, अप्-और वनस्पति की गति-तेऊ-वायु की आगति। गाथा पुढवाइदसपएसुपुढवी-आउ-वणस्सईजन्ति। पुढवाइ-दसपएहियतेउवाउसुउववाओ॥३७॥ संस्कृत अनुवाद पृथिव्यादिदशपदेषु, पृथव्यब्वनस्पतयोयान्ति पृथिव्यादिदशपदेभ्यश्च, तेजोवाय्वोरुपपातः॥३७।। दंडक प्रकरण सार्थ (104) गति - आगति द्वार चालु