Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ 13) अज्ञान २-सबको मतिअज्ञान और श्रुतअज्ञान ये दो अज्ञान है। 14) योग 4- 1: असत्यामृषा वचनयोग, 2) औदारिक काययोग, 3) औदारिक मिश्र४) तैजस कार्मण ये चार योग पर्याप्त अवस्था में, अपर्याप्त अवस्था में वचनयोग के बिना 3 योग है। समूर्छिम मनुष्य अपर्याप्त ही होते है इसलिए उनको असत्यामृषा वचन योग के बिना 3 काययोग है। 15) उपयोग ६-समू. पंचेन्द्रिय तिर्यंच को ज्ञानद्वार के अनुसार सिद्धांत के मत से १)मतिज्ञान २)श्रुतज्ञान ३)मतिअज्ञान ४)श्रुतअज्ञान ५)चक्षुदर्शन ६)अचक्षुदर्शन ये छ उपयोग होते है और कर्मग्रंथ के मत से दो ज्ञान के बिना 4 उपयोग है वह उपयोग अपर्याप्त अवस्था में होता है / पर्याप्त अवस्था में तो 4 उपयोग ही है। समूः मनुष्य को दोनों मत से चार उपयोग ही होते है। उपपात -एक समय में जघन्य से 1-2-3 और उत्कृष्ट से असंख्यात उत्पन्न होते है। 17) च्यवन-एक समय में जघन्य से 1-2-3 और उत्कृष्ट से असंख्यात च्यवन-मरण होते है। विरह-समू. तिर्यंच पंचे. के 5 भेद में से प्रत्येक भेद में जघन्य विरह 1 समय, तथा उत्कृष्ट विरह अंतमुहूर्त का है और समू. मनुष्यों का जघन्य विरह 1 समय तथा उत्कृष्ट विरह 24 मुहूर्त का है। . 18) स्थिति :- समू. तिर्यंच पंचे. को पांचों भेद का जघन्य आयु अंतर्मुहूर्त का है उत्कृष्ट आयु जलचर का 1 पूर्व करोड वर्ष, चतुष्पद का 84000 वर्ष, उरपरिसर्प का 57000 वर्ष का, भुजपरिसर्प का 42000 वर्ष का और खेचर का 72000 वर्ष का है। समू. मनुष्यों को दोनो तरह से अंतर्मुहूर्त का आयु है। पर्याप्ति 5- सबको पांच पर्याप्ति है समू. तिर्यंच पंचे. पर्याप्त और अपर्याप्त दोनो तरह के होते है इसलिए उनको पांचो पर्याप्ति हो सकती है और समू. मनुष्य अपर्याप्त अवस्था में ही मृत्यु पाते है इसलिए उनको पांचो पर्याप्ति दंडक प्रकरण सार्थ (114) वेद द्वार 19)