Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ 20 से 20 में देवों के 198 भेदोंमें आगति गति 51 भवन.१०, परमा. 15, व्यंतर 16, तिर्यग्भक 10, ये पर्याप्त 111 से 23 में 10 पर्याप्त ज्योतिषि 1 सौधर्म 50 से 23 में 1 पर्याप्त सौधर्म किल्बि. 50 से 23 में 1 पर्याप्त इशान 40 से 23 में 6 सनत से सहस्रार 20 से २०में 9 पर्याप्त लोकान्तिक 2 पर्याप्त किल्बि. 20 से 20 में 18 पर्याप्त आनत से सर्वार्थ तक . . 15 से 15 में 99 अपर्याप्त देव | पर्याप्त वत 0 में तिर्यंच के 48 भेद में आगति | गति 3 बा.पर्या.पृथ्वी.अप्.प्र.वन. 243 से 179 में 2 बा.पर्या. अग्नि, वायु 179 से 48 में (1)11 पृथ्व्यादि के शेष (11) भेद में | 179 से 179 में (2)6 अग्नि-वायु के शेष 48 से 48 में 6 विकलेन्द्रिय 179 से 10 सम्म तिर्थंच पंचेन्द्रिय 179 से |395 में 1 पर्या. गर्भज जलचर / 267 से |527 में 1 पर्या. गर्भज स्थलचर . 267 से |521 में 1 पर्या. गर्भज खेचर 267 से 519 में 1 पर्या. गर्भज उर: सर्प 1 पर्या. गर्भज भुजसर्प 267 से |517 में 5 अपर्या. गर्भज तिर्यंच पंचे. 179 से 179 में (१)पृथ्वी आदि के 3 सूक्ष्म पर्याप्त, अपर्या. गिनने से भेद, 1 बादर अपर्या. पृथ्वी, 1 बादर अपर्या. अप् 1 बादर अपर्या. साधारण वनस्पति, 1 बादर पर्या. साधारण वनस्पति, 1 बादर अपर्या. प्रत्येक वन. 6+1+1+1+1+1=11 (२)सूक्ष्म अग्निकाय और सू. वायुकाय के पर्या. और अपर्या. के 4 भेद तथा 1 बा. अपर्या. अग्नि, 1 बा. अपर्या. वायु. 4+1+1=6 | दंडक प्रकरण सार्थ (110) जीव भेदों की गति - आगति کک ک ک m