Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ गर्भज तिर्यंच के 1 दंडक में औदारिक और औदारिक मिश्र ये दो काययोग मिलाकर (पूर्वोक्त 11 योग सहित) तेरह योग होते है, गर्भज मनुष्य में 15 योग है। विकलेन्द्रिय के 3 दंडक में औदारिक, औदारिक मिश्र, कार्मण ये तीन काययोग और असत्यामृषा (व्यवहार) नाम का वचनयोग मिलाकर 4 योग होते ___वायुकाय के दंडक में औदारिक, वैक्रिय, औदारिक मिश्र, वैक्रिय मिश्र और कार्मण ये पांच प्रकार के काययोग है क्योंकि कितने बादर पर्याप्त वायुकाय जीव वैक्रिय लब्धिवाले होते है। स्थावर के 4 दंडक में औदारिक, औदारिक मिश्र और कार्मण ये तीन काययोग ही होते है। // 24 दंडक में 15 योग॥ 13 देव के दंडक में 11 - 3 विकलेन्द्रिय को-४ 1 नरक के दंडक में 11 1 वायुकाय को-५ 1 ग. मनुष्य को 15 4 स्थावर को-३ 1 ग. तिर्यंच को 13 १५उपयोग द्वार गाथा तिअनाणनाणपण, चउदंसण,बारजिअलक्खणुवओगा। इयबारस उवओगा, भणिया तेलुक्कदंसीहिं||२३|| तथा सिद्धांत अनुसार उपरोक्त दो प्रकार और उत्तर वैक्रिय तथा आहारक शरीर के प्रारंभ में इस तरह चार प्रकार औदारिक मिश्र समझना। वैक्रिय मिश्र मूलवैक्रिय की अपेक्षा से उत्पत्ति के दूसरे समय से लेकर अपर्याप्त अवस्था तक और तिर्यंच मनुष्य के उत्तर वैक्रिय के प्रारंभ और संहरण में इस तरह कर्मग्रंथ के अभिप्राय अनुसार तीन प्रकार से है। सिद्धांतानुसार उत्तर वैक्रिय प्रारंभ में न होनेसे दो प्रकार से है। आहारक मिश्र, आहारक शरीर के प्रारंभ में और संहरण मे इस तरह दो प्रकार से कर्मग्रंथ मतानुसार से है सिद्धांतानुसार प्रारंभ के बिना एक ही प्रकार से है। तैजस कार्मण योग वक्रगति द्वारा परभव में जाते समय 1-2-3 समय तक तथा केवली समुद्घात में 3-4-5 वां ये तीन समय तक तथा उत्पत्ति के पहले समय पर होता है। दंडक प्रकरण सार्थ उपयोग द्वार