Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
View full book text
________________ . किमाहारद्वार अब बीसवां किमाहार द्वार में चोवीस दंडक के जीवों को छ दिशा से आहार मिलता है क्योंकि छ दिशा का आहार लोकाकाश के अंदर के भाग में रहे हुए चोवीस दंडक के जीवों को होता है लेकिन पनग आदि वनस्पति याने सूक्ष्म वनस्पति आदि पांच दंडको में अर्थात सूक्ष्म वनस्पति सूक्ष्म वायु, (१)बादर वायु, सूक्ष्मअग्नि, सूक्ष्म अप्काय, सूक्ष्म पृथ्वी ये पांच सूक्ष्म और एक बादर मिलाकर छ प्रकार के जीवों में वायु दो प्रकार का गिनने से दंडकों तो पांच ही होते है। दंडक में छ दिशा का आहार की भजना याने अनिश्चितता, अनियमता जानना अर्थात् पांच दंडको में छ दिशा का आहार होना ऐसा कोई नियम नहीं होता है क्योंकि कितने जीवों को तो 6-5-4-3 दिशा का भी आहार होता है। वह इस तरह है। लोकाकाश के पर्यंत भाग मे रहे हुए इन पांच दंडको को आगे किमाहार द्वार के वर्णन में कहें मुताबिक 3-4-5 दिशा का आहार होता है और पर्यंत भाग को छोडकर, या पर्यंत भाग से थोडा हटकर लोकाकाश के अंदर रहे हुए इन पांच दंडक के जीवों को छ दिशा का आहार होता है। वहां पूर्वादि चार दिशाए तथा उर्ध्व और अधो ये छ दिशा जाननी। 4 विदिशा में से पुद्गल ग्रहण नहीं होता है / इसलिए 4 विदिशाओं का आहार कहा नही है। // 6 दिशा का आहार॥ - 19 दंडक मे 6 दिशा का। 5 स्थावर को 3-4-5-6 दिशा का फूटनोट : . (1) लोक के पर्यन्त भाग में बादरवायु के अलावा दूसरे बादर एकेन्द्रिय न होने से यहां पर सिर्फ बादर वायु कहा है क्योंकि एकेन्द्रिय के 22 भेद में से लोक के पर्यंत भाग में 12 जीव भेद ही है 10 भेद नहीं है। दंडक प्रकरण सार्थ किमाहार द्वार