Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ अन्वय सहित पदच्छेद विगले पंच पज्जत्ती,सब्वेसिंछ दिसि आहारहोई पणगआईपएभयणा,अहसन्नितियंभणिस्सामि // 31 // शब्दार्थ छद्दिसि-६ दिशा का पए-(दंडक) पद में आहार-आहार भयणा-भजना होई-होता है हो या न हो अनियम। सव्वेसिं-सभी दंडक के जीवों को | अह-अब पणगाई-सूक्ष्म वनस्पति आदि (5) | भणिस्सामि-कहता हूं, कहूंगा गाथार्थ विकलेन्द्रिय को पांच पर्याप्ति है। सभी को छ दिशा का आहार होता है लेकिन सूक्ष्म वनस्पति आदि रूप पनग आदि पदों की भजना अनिश्चितता है। अब 3 संज्ञि कहूंगा (द्वार)। विशेषार्थ विकलेन्द्रिय को मन पर्याप्ति के बिना 5 पर्याप्ति होती है। // 24 दंडक में६ पर्याप्ति॥ 13 देव को-६ . 5 स्थावर को-४ 1 ग. मनुष्य को-६ 3 विकलेन्द्रिय को - 5 1 ग. तिर्यंच को-६ 1 नरक को-६ दंडक प्रकरण सार्थ (16) पर्याप्ति किमाहार संज्ञि द्वार