Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ संस्कृत-अनुवाद सत्येतरमिश्रासत्यामृषा, मनोवचसीवैक्रिय आहारकः। औदारिको मिश्राःकार्मण, एतेयोगादेशिताः समये||२|| अन्वय सहित पदच्छेद सच्चइअरमीसअसच्च-अमोस मणवय विउवि आहारे उरलं मीसा कम्मण,इयजोगासमएदेसिया ||2|| शब्दार्थ सच्च-सत्य मीसा-मिश्र योग (ये तीनों काय के) इअर-इतर (असत्य) .. इय-ये मीस-मिश्र जोगा-१५ योग असच्चमोस-असत्यामृषा, देसिया-दिखाया है, कहा है व्यवहार समए-सिद्धांत में, आगम में उरलं-औदारिक काययोग विउव्वि-वैक्रिय काययोग आहार-आहारक काययोग गाथार्थ सत्य, असत्य, मिश्र, और असत्यामृषा (व्यवहार) मन और वचन, वैक्रिय, आहारक, औदारिक और इन तीनों के मिश्र तथा कार्मण, इस तरह श्री आगम में योग कहे है। विशेषार्थ इन 15 योग का स्वरूप द्वार-वर्णन में कहें अनुसार जानना। गाथा इक्कारससुर निरए, तिरिएसुतेर, पन्नरमणुएसु। विगलेचउ, पणवाए, जोगतियंथावरेहोइ||२२|| दंडक प्रकरण सार्थ (79) . योगदार