Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ विकलेन्द्रिय के 3 दंडक में दो ज्ञान और दो अज्ञान होता है पूर्व भव में मृत्यु के अन्तर्मुहूर्त के पहले उपशम समकिती होकर वापस समकित से गिरकर सास्वादन सम्यक्त्व युक्त मृत्यु पाकर विकलेन्द्रिय रूप से उत्पन्न होते हैं तब अपर्याप्त अवस्था में अल्प काल सास्वादन सम्यक्त्व होता है। इसलिए सास्वादन सम्यक्तव की अपेक्षा से अपर्याप्त अवस्था में विकलेन्द्रिय दो ज्ञानवाले कहे गये है और उसके बाद संपूर्ण भव पर्यंत मिथ्यादृष्टि होने से दो अज्ञान वाले कहे गये हैं। __गर्भज मनुष्य के एक दंडक में 5 ज्ञान और 3 अज्ञान होता है ।उसमें भी एक मनुष्य को समकाल में यथासंभव दो अज्ञान, तीन अज्ञान तथा एक ज्ञान केवल ज्ञान) दो ज्ञान, तीन ज्ञान (मनःपर्यव या अवंधिज्ञान सहित) अथवा 4 ज्ञान होता है। लेकिन समकाल में एक साथ 5 ज्ञान होता नहीं है। ज्ञान और अज्ञान ये दो भी एक साथ नहीं होता है। . // 24 दंडक में 5 ज्ञान और 3 अज्ञान॥ ज्ञान अज्ञान 3 दंडक ज्ञान अज्ञान 3 विकलेन्द्रिय में | 2 / 1 ग.मनुष्य mr ww 13 देवदंडक | 3 1 ग. तिर्यंच 1 नारक 5 स्थावर m my १४योगद्वार गाथा सच्चेअरमीसअसच्चमोसमण वय, विउवि आहारे। उरलं मीसा कम्मण, इयजोगादेसियासमए॥२१॥ | दंडक प्रकरण सार्थ (78) 78 योगद्धार