Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ ही होता है। वह अचक्षु दर्शन स्पर्शन, रसना, घ्राण, श्रोत्र, और मन के भेद से 5 प्रकार का है उसमें पांच स्थावर को स्पर्शनेन्द्रिय का सामान्य उपयोग रुप अचक्षु दर्शन है। द्वीन्द्रिय को स्पर्शनेन्द्रिय और रसेन्द्रिय इन दो इन्द्रियों का सामान्य उपोयग रूप अचक्षुदर्शन है त्रीन्द्रिय को स्पर्श और रसना और घ्राण इन तीन इन्द्रिय के द्वारा सामान्य उपयोग रूप अचक्षुदर्शन होता है। प्रश्न :- कोई जीव दर्शनगुण बिना के होते है या नहीं? उत्तर :- कोई भी जीव, किसी भी काल में दर्शन गुण बिना का नहीं होता है। प्रश्न :- तो फिर इन्द्रिय पर्याप्ति से अपर्याप्त को इन्द्रियों के बिना अचक्षु दर्शन किस तरह हो सकता है ? .. उत्तर :- जैसे मतिज्ञानावरणीय के क्षयोपराम रूप ज्ञानशक्ति स्वरूप भाव इन्द्रिय होती है वैसे दर्शन शक्तिरूप भाव अचक्षु दर्शन होता है। यहां सूक्ष्म भाव-मन रूप अचक्षुदर्शन जानना क्योंकि एकेन्द्रियादि असंज्ञि को द्रव्य मन का अभाव होने पर भी क्षयोपशम रूप भाव मन तो अवश्य होता है। तथा चतुरिन्द्रिय जीवों में चक्षुदर्शन तथा अचक्षुदर्शन दो दर्शन है, क्योंकि चतुरिन्द्रिय जीवों को चक्षु इन्द्रिय भी है इसलिए स्पर्श, रसना और घ्राणेन्द्रिय का सामान्य उपयोग वह अचक्षुदर्शन है और चक्षु द्वारा जो सामान्य उपयोग वह चक्षु दर्शन है। गर्भज मनुष्यों को यथायोग्य चार दर्शन होता है उनको अचक्षुदर्शन पूर्वोक्त प्रकार से पांच प्रकार का है। चक्षु इन्द्रिय होने से चक्षु दर्शन भी है और चारित्रादि गुण से प्राप्त की हुई लब्धि प्रत्ययिक अवधि ज्ञानवंत और विभंगज्ञानी को अवधि दर्शन है तथा केवलि भगवंत को केवल दर्शन है। . बाकी रहे देवो के 13 दंडक, नारक का 1, गर्भज तिर्यंच का 1, दंडक में चक्षु दर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन ये 3 दर्शन है। गर्भज तिर्यंच को व्रत तपश्चर्यादि गुण से लब्धि प्रत्ययिक और 14 दंडक में भव स्वभाव के होने से भव-प्रत्यंयिक अवधि दर्शन है। दंडक प्रकरण सार्थ (75) दृष्ठि द्वार