Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ शब्दार्थ पण-पांच समुद्घात चउर-चार समुद्घात दिट्ठी-दृष्टि मिच्छ-मिथ्या दृष्टि ति-इति (यह नाम की) गाथार्थ ___ गर्भज तिर्यंच और देवों को पांच समुद्घात, नरक और वायुकाय को चार, और बाकी रहे उनको तीन समुद्घात होता हैं। विकलेन्द्रिय को दो दृष्टि, स्थावर जीवों को मिथ्यात्व इस नाम की एक दृष्टि, और बाकी रहे उनको तीन दृष्टि होती है। विशेषार्थ : गर्भज तिर्यंच को आहारक समुद्घात और केवलि समुद्घात सिवाय पांच समुद्घात होते हैं। क्योंकि तिर्यंच को चारित्र तथा पूर्वधर लब्धि होती नहीं इसलिए आहारक लब्धि नहीं है। तथा केवलज्ञान का अभाव होने से केवलि समुद्घात भी नहीं है। लेकिन कितने तिर्यंच पंचेन्द्रिय देश विरति चारित्र के योग्य व्रतनियम तपश्चर्या होने से ऐसे गर्भज तिर्यंचों को वैक्रिय लब्धि और तैजसलब्धि होने से वैक्रिय समुद्घात तथा तैजस समुद्घात हो सकता है। गर्भज तिर्यंच की तरह देवों को भी वैक्रिय तथा तैजस लब्धि व्रत तपश्चर्यादि गुण से नहीं किन्तु तथा प्रकार के भव स्वभाव से ही उत्पन्न हुई होती है। नरक तथा वायुकाय को वेदना, कषाय, मरण और वैक्रिय ये चार समुद्घात है। इन दोनों दंडक में भव स्वभाव से ही वैक्रिय लब्धि होती है। वैक्रिय वाले कितने पर्याप्त वायुकाय जीव देवों से भी असंख्य गुण है। बाकी रहे 7 दंडकमें वेदना कषाय और मरण रुप तीन समुद्घात है। | दंडक प्रकरण सार्थ (72) दृष्टि द्वार