Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
View full book text
________________ विशेषार्थ : आगे द्वार वर्णन में संज्ञा त्रिक के (3 संज्ञा के) द्वार में जो दीर्घकालिकी संज्ञा कही है, वह संज्ञा जिस जीवों को होती है वह संज्ञि जीव कहलाता है और उस संज्ञि जीव को इस गाथा में कहे हुए वेदना आदि सात समुद्घात यथासंभव होते है। गाथा एगिंदियाणकेवल-तेउ-आहारगविणा उचत्तारि। तेवेउव्वियवज्जा विगला, सन्नीणतेचेव॥१७॥ संस्कृत अनुवाद एकेन्द्रियाणां केवलतैजसाहारकान विना तु चत्वारः। ते वैक्रियवा विकलानांसंज्ञिनांतेचैव॥१७॥ अन्वय सहित पदच्छेद एगिंदियाणकेवल तेउआहारगविणा उचत्तारिश विगलावेउव्वियवज्जासन्नीणचेवते॥१७॥ शब्दार्थ :एगिदियाण-एकेन्द्रिय जीवों को केवल-केवलि समुद्घआत तेउ-तैजस समुद्घात आहारग-आहारक समुद्घात विणा-विना, सिवाय उ-तथा, और चत्तारि-चार समुद्घात / दंडक प्रकरण सार्थ / ते-वे (4 समुद्घात) वेउव्विय-वैक्रिय समुद्घात वजा-वर्जित, रहित, विना सिवाय के सन्नीण-संज्ञि जीवों को ते-वे (सातों) समुद्घात चेव-निश्चय (70) समुद्घातों के नाम