Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ यह शरीर देवों तथा नरक को भवप्रत्ययिक होता है। और लब्धिधारी, पंचेन्द्रिय, तिर्यंच-मनुष्य तथा बादर पर्याप्त वायुकाय को लब्धि प्रत्ययिक होता है। लब्धि प्रत्ययिक दो प्रकार का है - तपश्चर्यादि से मुनि भगवंत को जो होता है वह गुणप्रत्ययिक और वायुकाय, चक्रवर्ती, वासुदेव आदि को तपश्चर्यादि बिना ही कार्य विशेष (प्रसंग) पर बनाने की जो शक्ति होती है वह लब्धि प्रत्ययिक कहा जाता है। दिगम्बर इसको भी भव प्रत्ययिक कहते है। 3. आहारक शरीर :- (१)आम!षधि आदि लब्धिवाले + चौद पूर्वधर मुनिमहाराज ही विशेषतः आहारक वर्गणा के पुद्गलों को आहारण याने ग्रहण करके बनाते है। इसलिए इसका नाम आहारक शरीर कहा जाता है। इस शरीर की रचना पूर्वधर पुरुषों को कोई संशय हो तो उसका निराकरण करने के लिए आहारक शरीर बना कर, पास में, या दूर रहे हुए विचरते केवलि भगवंत के पास या तीर्थंकर भगवंत के पास भेजते है और तीर्थंकर भगवंतों की समवसरणादि ऋद्धि को देखने के लिए एक हाथ प्रमाण का (बंध मुट्ठी वाले - एक हाथ) वैक्रिय शरीर से कई अधिक देदीप्यमान शरीर बनाकर भेजते है। वहां वंदनादिक कार्य समाप्त कर वापस आकर आत्म प्रदेशों मूल औदारिक शरीर में प्रवेश होते ही तुरंत वह बिखर जाता है। यह शरीर जब विद्यमान होता है तब उत्तर वैक्रिय शरीर की तरह मूल और बनाया हुआ दोनों शरीर के बीच में आत्म प्रदेशों की लंबी श्रेणी होती है। ___ इस शरीर की वर्गणाएँ वैक्रिय शरीर की वर्गणा से सूक्ष्म और तेजस्वी होती हैं यह शरीर संपूर्ण संसार चक्र में सिर्फ चार (4) बार ही किया जाता है। .4. तैजस शरीर :- तैजस वर्गणा के पुद्गलों में से इस शरीर की रचना होती है। शरीर में और जठर में जो गर्मी महसूस होती है वह इस शरीर की है। फुटनोट : .. ''आमर्षोंषधि याने शरीर में अथवा उनके किसी भी अंगोपांग में ऐसी लब्धि (शक्ति) उत्पन्न होती है। जिसके स्पर्श मात्र से सभी रोग नष्ट हो जाते है। + ये लब्धियां और चौद पूर्वधर के बिना आहारक लब्धि होती नहीं है। दंडक प्रकरण सार्थ (13) उपयोगी व्याख्याएँ