Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ 1) चक्षु दर्शन :- चक्षु से पदार्थ के रूप में रहे हुए सामान्य धर्म को जानने की जो शक्ति, वह चक्षु दर्शन। 2) अचक्षु दर्शन :- चक्षु के अलावा अन्य इन्द्रियों द्वारा और मन द्वारा पदार्थ के रसादि में रहे हुए सामान्य धर्म जानने की जो शक्ति है वह अचक्षु दर्शन। 3) अवधिदर्शन :- अवधिज्ञान के द्वारा जानने योग्य रूपी पदार्थों में रहे हुए सामान्य धर्म को जानने की आत्मा में रही हुई शक्ति, वह अवधिदर्शन। 4) केवलदर्शन :- जगत के सभी रूपी, अरूपी पदार्थ में रहे हुए सामान्य धर्म जानने की आत्मा में रही हुई जो शक्ति है उसे केवल दर्शन कहते हैं। 12. ज्ञान-५ - हरेक पदार्थ में रहे हुए सामान्य और विशेष धर्म में से विशेष धर्म जानने की आत्मा में रही हुई आत्मा की जो शक्ति वह ज्ञान है। ... 1. मतिज्ञान :- मन और इन्द्रियों के द्वारा विषयों मे रहे हुए विशेष धर्म जानने के लिए जो ज्ञान शक्ति जागृत होती है। उस ज्ञान शक्ति को मतिज्ञान कहते 2. श्रुतज्ञान :- शब्द के द्वारा अर्थ का और अर्थ के द्वारा शब्द का संबंध जानने की जो ज्ञानशक्ति है वह मन और इन्द्रियों के निमित्त से जागृत होती है। इस ज्ञानशक्ति को श्रुतज्ञान कहते है। 3. अवधिज्ञान :- इन्द्रियादि के निमित्त बिना, साक्षात् आत्मा के द्वारा रूपी पदार्थ में रहे हुए विशेष धर्म जानने की जो ज्ञानशक्ति जागृत होती है वह अवधिज्ञान कहलाता है। 4. मन :- पर्यव ज्ञान :- साक्षात् आत्मा के द्वारा ढाई द्वीप में रहे हुए संज्ञि जीवों के मनोगत भाव को जानने के लिए जागृत होती जो ज्ञानशक्ति है वह ... मन : पर्यव ज्ञान है। दंडक प्रकरण सार्थ (31) ज्ञानद्वार