Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
View full book text
________________ समय पर कार्मण के साथ औदारिक मिश्र होता है / 2. उत्तरवैक्रिय शरीर की रचना के समय प्रारंभ में वैक्रिय के साथ मिश्रित होता है। 3. आहारक शरीर की रचना के समय प्रारंभ मे आहारक शरीर के साथ मिश्रित होता है / 4. केवलि भगवंत को केवली समुद्घात के ,2, 6 और 7 वें समय पर औदारिक मिश्र योग होता है। 3. वैक्रिय काययोग :- वैक्रिय शरीर की गमनादि चेष्टा के समय आत्मा में जो व्यापार होता है वह वैक्रिय काययोग। 4. वैक्रिय मिश्र काययोग :- वैक्रिय शरीर और कार्मण शरीर का तथा वैक्रिय शरीर और औदारिक शरीर के मिश्रणवाला शरीर की गमनादि क्रिया के समय आत्मा मे जो व्यापार होता है वह वैक्रिय मिश्र काययोग / यह शरीर देव, नरक को अपर्याप्त अवस्था में और उत्तर वैक्रिय शरीर बनाते समय होता है। मनुष्य, तिर्यंचों और वायुकाय को वैक्रिय शरीर बनाते समय होता है। तथा सिद्धांत के मत से वैक्रिय शरीर संहरण के समय भी होता है। 5. आहारक काययोग :- आहारक शरीर की गमनादि क्रियाओं के समय आत्मा में चलनेवाला व्यापार। 6. आहारक मिश्र काययोग :- औदारिक और आहारक शरीर का मिश्रण होते समय आत्मा में चलनेवाला जो व्यापार। ____ आहारक मिश्र, आहारक शरीर बनाते समय शुरु होता है और सिद्धांत के .. मत से संहरण के समय भी होता है। 7. कार्मण काययोग :- सिर्फ कार्मण और तैजस शरीर जब अकेले होते है तब उनकी चेष्टा समय आत्मा में चलता जो व्यापार वह कार्मण काययोग। ___ यह शरीर जीव को पर-भव जाते समय बीच में साथ में होता है, और केवली समुद्घात के समय 3-4-5 समय पर होता है। दंडक प्रकरण सार्थ मनोयोग द्वार