Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ भी होती है। द्रव्यभाव का स्वरूप द्वारवर्णन में कहा हुआ है। १-नरक - 1 कृष्ण १-अग्निकाय - / / नील १-वायुकाय - कापोत / ३-विकलेन्द्रिय - 3 अशुभ) , वैमानिक तेजो आदि देवो को-३ शुभ (1) कौनसे नरक में कौनसी अशुभ लेश्या तथा कौनसे वैमानिक देव को कौनसी शुभ लेश्या होती है उसका विस्तार अन्य ग्रंथों से जानना। फूटनोट : (१)सात नरक में लेश्या का क्रम :1) रत्नप्रभा (2) शर्कराप्रभा में :- सभी नरक को कापोत लेश्या 3) वालुकाप्रभा में 3 सागरोपम के आयुवाले को कापोत और उनसे अधिक आयुवाले को नील लेश्या होती है। 4) पंकप्रभा में सभी को नील लेश्या। 5.) धूमप्रभा में साधिक 10 सागरोपम तक के आयुष्य को नील और उनसे अधिक आयुष्यवाले को कृष्ण-लेश्या होती है। (6-7) तमः प्रभा तथा तमस्तमप्रभा नरक में सबको कृष्ण लेश्या होती है। . यहां पर पृथ्वीओं के क्रमानुसार अधिक अधिक मलिन लेश्या जाननी। वैमानिक :- देवों में लेश्या का क्रम :1-2 देवलोक में तेजोलेश्या 3-4-5 देवलोक में पद्मलेश्या 6 से सवार्थसिद्ध अनुत्तर विमान तक सभी देवों को शुक्ललेश्या होती हैं। देवलोक के क्रमानुसार लेश्याएँ अधिक-अधिक विशुद्ध जाननी / . ८वां इन्द्रिय और ९वां समुद्धात द्वार | दंडक प्रकरण सार्थ (65) इन्द्रिय और समुद्धात द्वार