Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ विशेषार्थ (1) एकेन्द्रिय जीवों के हुंडक संस्थान प्रत्येक वनस्पतिकाय के - अलग अलग अनेक आकार वायुकाय का - ध्वजा का आकार अग्निकाय का - सूई का आकार अप्काय का - बुद बुद (परपोटे) का आकार पृथ्वीकाय का - मसूर की दाल या अर्ध चंद्र का आकार प्रत्येक वनस्पतिकाय सिवाय के किसी का भी एक शरीर नहीं दिखाई देता। उससे उसके संस्थानों भी देख नहीं सकते। (1) // 24 दंडक में 6 संस्थान॥ 13 देवदंडक 1 समचतुरस्र 3 विकलेन्द्रिय-१ हुंडक . 1 ग.मनुष्य-६ 1 नरक-१ हुंडक . 1 ग.तिर्यंच-६ . . 5 स्थावर-१ हुंडक ६कषाय और७ लेश्या द्वार गाथा सब्वेवि चउकसाया, लेस-छगंगब्भतिरियमणुएसु। . नारयतेउवाऊ, विगलावेमाणिय तिलेसा॥१४॥ फूटनोट : (1) यहां पर सूक्ष्म पृथ्वी आदि का और बादर पृथ्वी आदि का भी हुंडक संस्थान आगे कहे अनुसार ही है। लेकिन विशेष यह है कि सूक्ष्म और बादर साधारण वनस्पति का संस्थान भी विविध आकृति के है ऐसा श्री जीवाभिगमादि सूत्र में कहा है। और संग्रहणी वृत्ति में निगोद का औदारिक शरीर स्तिबुक (बुद बुद) आकारवाला (याने नक्कर गोला) जैसा कहा है। जीवाजीवाभिगम के अभिप्राय से तथा द्रव्यलोक प्रकाश में अनित्थंस्थ (अनियत) संस्थान कहा है। वायुकाय वैक्रिय शरीर की रचना करे फिर भी ध्वजा के आकार से ही रचते हैं। तत्वार्थवृत्ति में प्रत्येक वन का अनित्थंस्थ संस्थान कहा है। | दंडकं प्रकरण सार्थ (63) कषाय, लेश्या द्वार