Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ में भय और क्रोध संज्ञा अधिक है, और तिर्यंच गति में माया तथा आहार संज्ञा अधिक है।) संस्थानद्वार सभी देवों को (याने देव के 13 दंडकों में) 1 समचतुरस्र संस्थान होता है अर्थात् किसी भी देव या देवी को समचतुरस्र सिवाय दूसरा संस्थान नहीं होता है परन्तु वह भवधारणीय (मूल) शरीर के अपेक्षा से जानना, क्योंकि देवों का उत्तर वैक्रिय संस्थान तो सिद्धान्त में अनेक प्रकार का कहा है। गर्भज मनुष्य और गर्भज तिर्यंचों को भी छ संस्थान होते है। युगलिक मनुष्य और युगलिक तिर्यंचों को तो देवों की तरह एक ही समचतुरस्र संस्थान ही जानना, और शेष (2) संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले मनुष्य-तिर्यंचों को यथा संभव 6 संस्थान होते है, परन्तु एक जीव को समकाल में कोई भी एक ही संस्थान होता - विकलेन्द्रिय और नरक को सर्व लक्षणहीन छट्ठा हुंडक संस्थान होता है फूटनोट : (१)चार गतिओं में आहारादि 4 संज्ञाओं का अल्प-बहुत्व शास्त्र में इस तरह से कहा है : किसी भी समय पर सोचने से नरंकगति में मैथुन संज्ञावाले जीव अल्प उनसे आहार संज्ञावाले संख्यातगणा, उनसे परिग्रह संज्ञावाले संख्यात गुणा उनसे भयसंज्ञावाले संख्यातगुणा। देवों में आहार, भय, मैथुन और परिग्रह संज्ञावाले क्रमशः एक दूसरे से संख्यातगुणा है। मनुष्यों में भय, आहार, परिग्रह और मैथुन संज्ञावाले क्रमशः एक दूसरे से संख्यातगुणा है। पंचें. तिर्यंचों में परिग्रह, मैथुन, भय, आहार संज्ञावाले क्रमशः एक दूसरे से संख्यातगुणा है तथा एक समय में एक जीव को एक संज्ञा स्पष्ट अनुभव में होती है। अंतर्मुहूर्त के बाद हरेक जीवों की संज्ञाएं बदलती रहती ऊपर कही गई संज्ञाओं की उस-उस गति में अधिकता कही है वह ऐसे ऐसे संयोगो की वजह से होती है / पंचेन्द्रिय सिवाय के जीवों का अल्पबहुत्व कहा हुआ देखने में आया नही है। इसलिए उस जीवों में अनियमितता होगी, ऐसा लगता है। फूटनोट : ___(२)संख्यात वर्ष के आयुवाले मनुष्यों में भी सभी तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, प्रतिवासुदेव आदि समचतुरस्र संस्थानवाले होते है। | दंडक प्रकरण सार्थ (61) संस्थान द्वार चालु ||