Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
View full book text
________________ 24 वेद-३ वेद का अर्थ है विषयक्रीडा संबंधी अभिलाष, वह तीन प्रकार का है। 1) स्त्रीवेद 2) पुरुषवेद 3) नपुंसक वेद, उनका संक्षिप्त स्वरुप इस तरह है। 1) स्त्रीवेद :- पुरुष के साथ विषयक्रीडा भोगने की स्त्री की जो इच्छा वह स्त्रीवेद। 2) पुरुषवेद :- पुरुष को स्त्री के साथ विषय भोगने की जो इच्छा वह पुरुषवेद। 3) नपुंसक वेद :- स्त्री और पुरुष दोनों के साथ विषय सुख भोगने की इच्छा वह नपुंसकवेद। इन तीन वेदों में पुरुषवेद घास की अग्नि के समान है जो तुरंत उत्पन्न होता है और तुरंत शांत होता है। स्त्रीवेद छाने की आग के समान देर से उत्पन्न होता है और देर से शांत होता है। और नपुंसकवेद नगर दाह के समान याने बडे नगर में लगी हुई आग के समान शांत होना अशक्य होता है और बहुत उग्र होता है। . जिस जीव को जो वेद होता है उस जीव को उसके लिंग याने बाह्य निशानियां भी होती हैं / उसमें जिसको शुक्र-वीर्य धातु हो, शरीर में कर्कशता, दृढ़ता, पराक्रम, पुरुष चिन्ह (शिश्न) अक्षोभता (स्त्री को देखकर सच्चा पुरुष तुरंत चंचल नहीं बनता) गंभीर होता है, दाढी मूच्छ होती है, छाती आदि में बाल होते है। धैर्यता आदि बाह्यलिंग लक्षण हो वह पुरुष लिंग कहा जाता है। तथा योनि, सात धातुओं में शुक्र की जगह कामसलिल, रज-रुधिर, कोमल शरीर, मूर्खता, स्तन, चंचलता, अविचारीता, माया कपट, अधीरता आदि स्त्रीलिंग के लक्षण हैं। और पुरुष तथा स्त्री दोनों के लक्षणों का जिसमें भावाभाव हो जैसे कि पुरुषत्व के कितने लक्षण हो और कितने न हो तथा स्त्रीत्व के कितने लक्षण हो और कितने लक्षण न हो अथवा दोनो लक्षणों के मिश्रित लक्षणं हो। जैसे कि योनि, स्तन हो और दाढी मूंछ भी हो ऐसे लक्षणवाली स्त्री दंडक प्रकरण सार्थ वेद द्वार