Book Title: Dandak Prakaran Sarth Laghu Sangrahani Sarth
Author(s): Gajsarmuni, Haribhadrasuri, Amityashsuri, Surendra C Shah
Publisher: Adinath Jain Shwetambar Sangh
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________________ अन्य तीन शरीरों की अवगाहना और कालः दंडक पदों में औदारिक का मूल और उत्तरवैक्रिय की अवगाहना तथा काल कहा है। और आहारक शरीर की अवगाहना तथा काल और तैजस, कार्मण शरीर की अवगाहना तथा काल नहीं कहा है। लेकिन वह इस प्रकार है :___आहारक शरीर की जघन्य अवगाहना प्रारंभ के समय उत्तर वैक्रिय के समान अंगुल का असंख्यतवा भाग नहीं है लेकिन कुछ न्यून 1 हाथ प्रमाण है। और उत्कृष्ट अवगाहना पूर्ण 1 हाथ प्रमाण है। तथा काल जघन्य और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है उसके बाद आहारक शरीर का विलय होता है और आत्मप्रदेश औदारिक देह में प्रवेश पाते है। .. ___तैजस, कार्मण की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवा भाग है अर्थात् सूक्ष्म वनस्पति का औदारिक शरीर जितना है। उत्कृष्ट से साधिक 1 लाख योजन प्रमाण है, वह उत्तरवैक्रिय शरीर की अपेक्षा से है। और केवलि समुद्घात की अपेक्षा से संपूर्ण लोकाकाश प्रमाण है। ३.संघयण द्वार गाथा थावरसुरनेरइया,अस्संधयणाय विगल छेवट्ठा। संघयण-छग्गंगब्भय-नर-तिरिएसुविमुणेयत्वं||११|| संस्कृत अनुवाद स्थावरसुरनैरयिका असंहननाश्च, विकलाःसेवार्ताः संहननषट्कंगर्भजनरतिर्यक्ष्वपिज्ञातव्यम्॥११|| अन्वय सहित पदच्छेद थावरसुरनेरइया, अस्संघयणाय विगल छेवट्ठा। गब्भय नरतिरिएसुअविछग्गंसंघयणमुणेयव्वं||११|| | दंडक प्रकरण सार्थ (57) संघयण द्वार